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उछली कहीं गिरी 

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जीवन सांझ

यादों में डूबा मन

खुला झरोखा।

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by बृजेश नीरज on January 16, 2017 at 9:02pm

 हाइकू की प्रत्येक पंक्ति का अपने अर्थ के लिए स्वतंत्र होना आवश्यक है. इस प्रयास के लिए बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 16, 2017 at 8:39pm

आदरणीया नीलम उपाध्याय जी, आपने तीनों हाइकू बहुत बढ़िया लिखे हैं. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 16, 2017 at 8:06pm

आदरनीया नीलम जी , अच्छी हाइकु रचना हुई है , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by narendrasinh chauhan on January 16, 2017 at 6:13pm

बेहतरीन हाइकु रचना

Comment by Neelam Upadhyaya on January 16, 2017 at 3:04pm

लगभग चार वर्षों के अंतराल के बाद फिर OBO पर फिर उपस्थित हुई हूँ – डरते-डरते कुछ प्रयास किया । आप सभी आदरणीयों की टिप्पणी से मनोबल बढ़ गया है । आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद ।                       

Comment by Neelam Upadhyaya on January 16, 2017 at 3:04pm

लगभग चार वर्षों के अंतराल के बाद फिर OBO पर फिर उपस्थित हुई हूँ – डरते-डरते कुछ प्रयास किया । आप सभी आदरणीयों की टिप्पणी से मनोबल बढ़ गया है । आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद ।                       

Comment by Samar kabeer on January 16, 2017 at 11:16am
मोहतरमा नीलम उपाध्याय जी आदाब,बढ़िया हुए आपके हाइकू,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by manju sharma on January 16, 2017 at 1:22am

बेहतरीन हाइकु रचनाओं के लिए बधाई और शुभकामनाएँ आदरणीया नीलम उपाध्याय जी।

Comment by Mohammed Arif on January 15, 2017 at 5:24pm
आदरणीया नीलम उपाध्यायजी , नमस्कार ! नन्हे से , प्यारे से हाइकु की प्रस्तुति के लिए ढेरों बधाईयाँ ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 15, 2017 at 11:08am
गहरे भाव सम्प्रेषित करती बेहतरीन हाइकू रचनाओं के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ आदरणीया नीलम उपाध्याय जी।

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