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तरही गजल/सतविन्द्र कुमार राणा

तरही गजल
बह्र:122 122 122 122
काफ़िया:अर
रदीफ़:देख लेना
---
गरीबों के दिल में है डर देख लेना
अमीरों की तिरछी नजर देख लेना।

नहीं तीरगी की हमें फ़िक्र कोई
नए हौंसलों की सहर देख लेना।

जरूरत नहीं है अभी बोलने की
खमोशी जो लाए ग़दर देख लेना।

मुहब्बत को मेरी भुला क्या सकेंगे?
*वो आएँगे थामे जिगर देख लेना।*

मेरा दर्द ही दर्द उनका बना है
मेरे अश्क उन गाल पर देख लेना।

सहारा बनोगे तभी फल वो देंगे
जरा खेत में भी शज़र देख लेना।

तुम्हें फैसलों से जो मिल जाए फुर्सत
व्यवस्था हुई है लचर देख लेना।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Mahendra Kumar on January 2, 2017 at 7:12pm
मेरे कहे को मान देने का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय सतविन्द्र भाई जी। सादर।
Comment by Samar kabeer on January 2, 2017 at 5:10pm
'मेरा अश्क'नही कर सकते,यूँ कर सकते हैं:-
'मेरे अश्क उन गालों पर देख लेना'
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 2, 2017 at 4:21pm
आदरणीय महेंद्र जी प्रयास पर उपस्थित होकर हौंसलाफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया।आपका सुझाव उम्दा है।आली रवि शुक्ल जी ने भी यही सुझाव दिया था।इसको ऐसा करना शायद ज्यादा प्रभावी है।सादर
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 2, 2017 at 4:17pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी,सादर नमन।प्रयास को समय देकर सराहने के लिए सादर हार्दिम आभार
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 2, 2017 at 4:16pm
आदरणीय तस्दीक अहमद जी,प्रयास को समय देकर सराहने के लिए तहे दिल आत्भर
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 2, 2017 at 4:15pm
मेरे अश्क की जगह मेरा अश्क किया जाए तो क्या ठीक रहेगा,आदरणीय समर कबीर जी?
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 2, 2017 at 4:14pm
आदरणीय समर कबीर जी,स्नेहिल प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन जे लिए तहेदिल शुक्रिया!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 2, 2017 at 4:13pm
आदरणीय आरिफ जी,स्नेहिल प्रोत्साहन के ललिए तहेदिल आभार
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 2, 2017 at 4:12pm
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ भाई जी बहुत बहुत आभार आपका!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 2, 2017 at 4:11pm
आदरणीय तेजवीर सिंह जी,प्रोत्साहन और अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार।

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