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आओ मिलकर दीप जलाएँ(नवगीत)/सतविन्द्र कुमार राणा

आओ मिलकर दीप जलाएँ

करने सबकुछ जगमग-जगमग
प्रेम रौशनी हम छितराएँ
आओ मिलकर दीप जलाएँ।

जो सरहद पर लगे हुए हैं
इसकी बस रक्षा करने को
इसकी खातिर तैयार खड़े
जो जीने को औ मरने को
शत्रु को निढाल बनाते हैं
उर में उनका मान बढ़ाएँ।
आओ मिलकर दीप जलाएँ

तन में तो मन धरा सभी ने
जीवन सबको मिला हुआ है
बस जीवन को काट रहे जो
शिक्षण जिनका हिला हुआ है
अज्ञान तिमिर में डूबे जो
ज्ञान सभी तक लेकर जाएँ
आओ मिलकर दीप जलाएँ।

प्रेम मिलन से खिलते उत्सव
सौहार्द इन्हीं से बढ़ता है
आपस में सब हिले-मिले हों
हर दिन उत्सव-सा चढ़ता है
सारी रंजिश को जीवन से
आओ सब ही दूर भगाएँ
आओ मिलकर दीप जलाएँ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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