For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"आज तो इसकी सारी फरमाइशें पूरी कर दूंगा",सोई पत्नी के चेहरे पर स्नेहिल दृष्टि डालते हुए जैसे उसने स्वयं को याद दिलाया।

सोती हुई स्त्री के चेहरे पर बीते दिन की उदासी अब भी दिख रही थी। पलकें घण्टों रोते रहने से अब भी सूजी हुई थीं। आंसुओं के साथ बह गए काजल ने गाल पर धब्बे छोड़ दिए थे। सोई हुई पत्नी उसे बहुत सुंदर लग रही थी। जाने कितने दिन बाद उसका चेहरा इतने गौर से देखा था। वो और भी निहारता पर उसने कुलबुलाकर सिर थोड़ा और घुमा लिया और बिना आँख खोले फिर सो गई।

"कौन कहेगा ये दो बच्चों की मां है, खुद भी बच्ची लग रही हैं, वैसे बच्चों से कम भी नही है।" पति उठकर बैठ गया और अपना तकिया गोद में रख पत्नी को देखता रहा। सुबह की सुनहरी धूप पर्दे से छनकर उसके बालों को सोने सी चमक दे रही थी।

" कितनी ज़िद्दी हो तुम!" होठों में ही बुदबुदाता पति मुस्कुरा उठा।

"वैसे गलती मेरी ही थी, अगर नहीं आ सका था तो फोन करके ही बता देता, बेचारी मेरे इंतज़ार में तो न बैठी रहती। पर मुझे भी कहाँ पता था कि काम में ऐसे उलझ जाऊँगा।" पति के चेहरे पर लाचारी तैर गई।

"गुस्सैल कहीं की! खाना भी नही खाया रात को। आज प्यार से मना लूंगा इसे, अभी जागते ही चाय पिलाता हूँ अपने हाथ से बना कर,आज नाश्ता भी खुद ही बनाऊंगा। ये भी तो यही चाहती है कि कभी कभी इसके साथ वक्त बिताऊँ तभी तो कल बच्चों को भी उनकी नानी के घर भेज दिया था।" पति के मन में विचारों के सैलाब उठ रहे थे।

"रोज़ तो मुझसे पहले उठ जाती हैआज अब तक सो रही है? तबियत ठीक तो है इसकी?" पत्नी के लिए मन में चिंता भर आई।

माथा छूकर देखना चाहा तो वह जाग गई।

"अरे, आप उठ गए,पता नहीं कैसे आँख नही खुली मेरी। आपने जगाया क्यों नहीं?"बाल समेटती पत्नी ने हड़बड़ाते हुए पूछा।

"तू कल रूठ गई थी ना..."

"अरे, बस आ गया था गुस्सा। मैं भी आपकी परेशानी समझती हूँ।" पत्नी मुस्कुराने लगी थी।

पति ने पत्नी का हाथ थाम लिया था।

"चाय बना लाती हूँ।" पत्नी ने हाथ थपथपाते हुए कहा।
तभी पति का फोन बजा, दफ्तर से था।

"तुम चाय बनाओ,मैं नहा लेता हूँ तब तक,आज ऑफिस जल्दी पहुंचना है।"

पत्नी ने मुस्कुराकर सिर हिला कर हामी भरी। अब पति कुछ उदास था।

Views: 539

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 19, 2016 at 10:48am

आम ज़िन्दगी का सजीव चित्रण अच्छी लघुकथा है

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 18, 2016 at 10:00pm
बहुत बढ़िया कथानक पर बढ़िया पेशकश। लेकिन दुविधा में भी हूँ।
सोई हुई पत्नी/सोती हुई स्त्री / और भी उदास भी, सुंदर भी लगना ... आशय स्पष्ट नहीं हो सका है मुझे। /होठों में ही बुदबुदाता/ या केवल /बुदबुदाता/?
Comment by Samar kabeer on October 18, 2016 at 5:39pm
मोहतरमा सीमा सिंह जी आदाब,बहुत दिलचस्प लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 18, 2016 at 5:26pm
रोचक , बधाई , आदरणीय सुश्री सीमा सिंह जी , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
32 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
23 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
23 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत दोहे चित्र के मर्म को छू सके जानकर प्रसन्नता…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर,  प्रस्तुत दोहावली पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आर्ष ऋषि का विशेषण है. कृपया इसका संदर्भ स्पष्ट कीजिएगा. .. जी !  आयुर्वेद में पानी पीने का…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service