For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सकल दुख तरल रूप में आज वर्षित---ग़ज़ल, पंकज मिश्र

122 122 122 122
घनीभूत पीड़ा मनस व्योम क्षोभित
सकल दुख तरल रूप में आज वर्षित

अभीप्सा सुमन पर है मूर्च्छन प्रभावी
है निर्जीव सा तन हृदय ताल बाधित

कहाँ चाँदनी से क्षितिज था चमकना
कहाँ दामिनी ने किया पूर्ण भस्मित

पुनः लेखनी आज मानी न आज्ञा
गजल में किया है तुम्हें फिर सुशोभित

सजल चक्षुओं में कहाँ नींद होगी
निशा एक फिर से हुई तुझको अर्पित

न उद्देश्य किंचित भी चर्चा का लेकिन
तेरे नाम का मन्त्र बांचे पुरोहित

अमिय प्रीत की कामना थी अमित पर
गरल स्वार्थ का दान पंकज को प्रेषित

मौलिक अप्रकाशित

Views: 890

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 25, 2016 at 9:47pm
आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम, शीघ्र ही संशोधन किया जायेगा

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 24, 2016 at 10:57am

आदरणीया राजेश कुमारी जी और भाई रामबली जी के सार्थक विन्दुओं के सापेक्ष प्रस्तुति में परिवर्तन आवश्यक होगा. 

प्रयास केलिए धन्यवाद. 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:50pm
आदरणीय रामबली सर, उत्तम सुझाव के लिए सादर नमन स्वीकारें
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:49pm
आदरणीय राजेश दीदी सुझाव के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद तथा अनुरूप संशोधन करता हूं
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:47pm
आदरणीय अर्पणा जी बहुत-बहुत आभार स्वीकार करें
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:46pm
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:45pm
आदरणीय सुरेश सर धन्यवाद।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:44pm
आदरणीय सुशिल सर सादर आभार, आपकी प्रतिक्रिया से मेरा मानवर्धन हुआ है, सादर प्रणाम

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2016 at 6:27pm

कहाँ चाँदनी से क्षितिज था चमकना-----का  चमकना कर लें 

पुनः आज्ञा लेखनी ने न मानी--शायद आज्ञा को आपने २१२ में बांधा है जो ठीक नहीं है आज्ञा २२ में ही आएगा 

सजल चक्षुओं में कहाँ नींद होगी
निशा एक फिर से हुई तुझको अर्पित---वाह्ह्ह्ह 

अमिय प्रीत की स्पृहा थी अमित पर---इसे भी चेक करें ---

थोड़े से सुधार के पश्चात् रचना बेहतर हो जायेगी बहुत बहुत बधाई 

Comment by Arpana Sharma on October 10, 2016 at 5:00pm
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति आ.श्रीमान् पंकज जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
6 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
19 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और सुख़न नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सम्माननीय ऋचा जी सादर नमस्कार। ग़ज़ल तकआने व हौसला बढ़ाने हेतु शुक्रियः।"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"//मशाल शब्द के प्रयोग को लेकर आश्वस्त नहीं हूँ। इसे आपने 121 के वज्न में बांधा है। जहाँ तक मैं…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है हर शेर क़ाबिले तारीफ़ है गिरह ख़ूब हुई सादर"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. भाई महेन्द्र जी, अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई। गुणीजनो की सलाह से यह और…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, बेह्तरीन ग़ज़ल से आग़ाज़ किया है, सादर बधाई आपको आखिरी शे'र में…"
7 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा जी बहुत धन्यवाद"
8 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी, आपकी बहुमूल्य राय का स्वागत है। 5 में प्रकाश की नहीं बल्कि उष्मा की बात है। दोनों…"
8 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service