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सकल दुख तरल रूप में आज वर्षित---ग़ज़ल, पंकज मिश्र

122 122 122 122
घनीभूत पीड़ा मनस व्योम क्षोभित
सकल दुख तरल रूप में आज वर्षित

अभीप्सा सुमन पर है मूर्च्छन प्रभावी
है निर्जीव सा तन हृदय ताल बाधित

कहाँ चाँदनी से क्षितिज था चमकना
कहाँ दामिनी ने किया पूर्ण भस्मित

पुनः लेखनी आज मानी न आज्ञा
गजल में किया है तुम्हें फिर सुशोभित

सजल चक्षुओं में कहाँ नींद होगी
निशा एक फिर से हुई तुझको अर्पित

न उद्देश्य किंचित भी चर्चा का लेकिन
तेरे नाम का मन्त्र बांचे पुरोहित

अमिय प्रीत की कामना थी अमित पर
गरल स्वार्थ का दान पंकज को प्रेषित

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 25, 2016 at 9:47pm
आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम, शीघ्र ही संशोधन किया जायेगा

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 24, 2016 at 10:57am

आदरणीया राजेश कुमारी जी और भाई रामबली जी के सार्थक विन्दुओं के सापेक्ष प्रस्तुति में परिवर्तन आवश्यक होगा. 

प्रयास केलिए धन्यवाद. 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:50pm
आदरणीय रामबली सर, उत्तम सुझाव के लिए सादर नमन स्वीकारें
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:49pm
आदरणीय राजेश दीदी सुझाव के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद तथा अनुरूप संशोधन करता हूं
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:47pm
आदरणीय अर्पणा जी बहुत-बहुत आभार स्वीकार करें
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:46pm
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:45pm
आदरणीय सुरेश सर धन्यवाद।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 23, 2016 at 10:44pm
आदरणीय सुशिल सर सादर आभार, आपकी प्रतिक्रिया से मेरा मानवर्धन हुआ है, सादर प्रणाम

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2016 at 6:27pm

कहाँ चाँदनी से क्षितिज था चमकना-----का  चमकना कर लें 

पुनः आज्ञा लेखनी ने न मानी--शायद आज्ञा को आपने २१२ में बांधा है जो ठीक नहीं है आज्ञा २२ में ही आएगा 

सजल चक्षुओं में कहाँ नींद होगी
निशा एक फिर से हुई तुझको अर्पित---वाह्ह्ह्ह 

अमिय प्रीत की स्पृहा थी अमित पर---इसे भी चेक करें ---

थोड़े से सुधार के पश्चात् रचना बेहतर हो जायेगी बहुत बहुत बधाई 

Comment by Arpana Sharma on October 10, 2016 at 5:00pm
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति आ.श्रीमान् पंकज जी

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