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ग़ज़ल - आँख जब भी कभी लड़ी होगी

बहरे ख़फ़ीफ़ मुसद्दस् मख़बून
फाइलातुन मुफाइलुन् फेलुन

2122 1212 22

उन अदाओं में तिश्नगी होगी ।
कोई खुशबू नई नई होगी ।।

यूं ही नाराजगी नही होती ।
बात उसने भी कुछ कही होगी ।।

होश आया कहाँ उसे अब तक ।
कुछ तबीयत मचल गई होगी ।।

बेकरारी का बस यही आलम ।
बे खबर नींद में चली होगी ।।

कर गया इश्क में तिज़ारत वह ।
शक है नीयत नहीं भली होगी ।।

वो बगावत की बात करता है ।
खबर शायद सही पढ़ी होगी ।।

फ़ितरत ए आइना मुकम्मल है ।
हर हक़ीक़त बुरी लगी होगी ।।

चाहतें जुर्म हैं ज़माने में ।
बे दखल आरजू पड़ी होगी ।।

दाग चूनर का धुल नही सकता ।
हो के मायूस चुप खड़ी होगी ।।

याद हर बार वो किया होगा ।
आँख जब भी कभी लड़ी होगी ।।

- नवीन मणि त्रिपाठी
अप्रकाशित एवम् मौलिक

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Comment by शिज्जु "शकूर" on September 24, 2016 at 5:17pm

बहुत बढिया आ. नवीन मणि त्रिपाठी जी शानदार ग़ज़ल हुई है,

बहर के हवाले से इन दो मिसरों को एक नज़र फिर से देख लीजिएगा 

///खबर शायद सही पढ़ी होगी/// ... यहाँ खबर को आपने 21 लिया है शायद,  जबकि यह 12 है

///बे दखल आरजू पड़ी होगी/// .... सही शब्द बेदख्ल है

शेष ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 24, 2016 at 1:09pm

आ. श्री त्रिपाठी जी अच्छी ग़ज़ल के लिये बधाई !!!

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