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गजल: दिल में ठहरा कोई ख्वाब सा रह गया..

दिल में ठहरा कोई ख्वाब सा रह गया
मैं उसे उम्रभर चाहता रह गया,

उसके जैसा कोई भी दिखा ही नहीं
जिसकी तसवीर मैं देखता रह गया,

शाम होते ही वो याद आने लगा
फिर उसे रातभर सोचता रह गया,

मुझसे मिलने वो आया बहुत दूर से
मैं शहर में उसे ढूंढता रह गया,

उसके बारे में अब याद कुछ भी नहीं
हां मगर याद उसका पता रह गया,

थी वो तकदीर शायद किसी और की
मैं दुआ में जिसे मांगता रह गया।।

.

# अतुल कुशवाह

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2016 at 4:16pm

यह ग़ज़ल संभवतः २१२२ १२२ १२२ १२  के वज़न में है. तो फिर बहर को कायदे से निभाया गया है. ग़ज़लकी भाषा हिन्दुस्तानी होने से शहर शब्द अपने इस विन्यास और इस अक्षरी से स्वीकार्य है. आपकी प्रस्तुतियों की प्रतीक्षा रहेगी. 

शुभेच्छाएँ, आदरणीय


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2016 at 10:23am

आदरनीय अतुल भाई , अच्छी हुई है गज़ल , हार्दिक बधाइयाँ । मंच की परम्परा है गज़ल के ऊपर मात्रा क्रम ( अरकान ) लिखने का , कृपया अरकान लिख दिया कीजिये ।

Comment by Samar kabeer on September 3, 2016 at 1:35pm
जनाब अतुल कुशवाह जी आदाब,आपकी पहली प्रस्तुति से गुज़र रहा हूँ,अच्छी गजल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
यहां मंच पर ग़ज़ल पर अरकान लिखने का नियम है,जो आपने नहीं लिखे ।

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