For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"बता जल्दी, कहाँ छुपा रखा है कमांडर को तुम लोगों ने", नशे में धुत्त और गुस्से के कांपते हुए दरोगा ने कस के एक लाठी मारी| मरियल सा आधी हड्डी का रग्घू लाठी पड़ते ही बाप बाप चिल्लाते हुए जमीन पर लेट गया| पीठ पर जहाँ लाठी पड़ी थी, वहां जैसे आग लग गयी थी उसके, लेकिन अब इतनी हिम्मत भी नहीं बची थी कि वो उठ पाए|
"साला, नाटक करता है, बहुत मोटी चमड़ी है इन सभो की, ऐसे नहीं बताएगा" कहते हुए दरोगा ने एक बार फिर लाठी उठायी| रग्घू जमीन पर पड़े पड़े फटी आँखों से देख रहा था, उसने अपने हाथ ऊपर उठा दिए| तब तक बगल में खड़े हवलदार ने लाठी पकड़ ली|
"अरे साहब, मर जायेगा ये, देखते नहीं, जान नहीं है इसके शरीर में", लाठी लेते हुए उसने कहा|
"ये सब इतनी जल्दी कहाँ मरते हैं| ठीक है अब तुम पूछो इससे, अगर फिर भी मुंह नहीं खोला तो और ढुकाई करता हूँ इसकी" कहते हुए दरोगा अपने कमरे की ओर बढ़ा| कुर्सी पर बैठकर उसने टांग मेज पर रखा और दारू की बोतल गटकने लगा|
हवलदार भी उसी तरफ का था और उसको थोड़ी हमदर्दी भी थी उन लोगों से| उसने रग्घू को उठाया और पानी का बोतल उसकी ओर बढ़ा दिया| रग्घू के हाथ कांप रहे थे, बोतल गिर पड़ी, जल्दी से उसने उठाया और थोड़ा पानी अंदर धकेला|
"देख रग्घू, ये दरोगा बिलकुल जानवर है, अगर जानता है तो बता दे, वर्ना मार डालेगा तुझको", हवलदार ने समझाते हुए कहा|
"अरे साहब, हमको तो इ भी नहीं मालूम कि इ कमांडर क्या है और कौन है| हमें तो किसी तरह अपना पेट भरने को मिल जाए, बस यही में दिन रात बीतता है| पिछले साल अपना लड़का भी गँवा बैठे थे जंगल में, आप ही बचा सकत हो हमको,", कहते कहते रग्घू फूट फूट कर रोने लगा|
"अच्छा, वो तुम्हारा लड़का था जिसे उन लोगों ने मार दिया था", हवलदार को याद आया| पुलिस का मुखबिर होने के संदेह में गिरोह के लोगों ने एक नौजवान को गोली मार दी थी|
"अब का बताएं साहब, उधर लड़का गवा पुलिस के साथ होये के सुबहा में और इधर पुलिस हमका मार डाली गिरोह के साथ होये के सुबहा में| अब तो जंगल के अंदर भी मरन है और बाहर भी, जियल ही मुश्किल है हम लोगन का", रग्घू सिसकते हुए लेट गया जमीन पर|
हवलदार सन्न हो गया, उसने एक बार फिर उठाया रग्घू को और दीवार से सहारा देकर बैठा दिया|
"मैं बात करता हूँ दरोगा से, शायद मान जाये, नहीं तो तुम्हारी किस्मत", बुझे मन से बोलता हुआ वो दरोगा के कमरे की तरफ बढ़ा| उसने अंदर झाँका, दरोगा दारू की बोतल खाली करके कुर्सी पर ही लुढ़क गया था|
थके क़दमों से वो बाहर निकला और जाकर चबूतरे पर बैठ गया| चारो तरफ अँधेरा सांय सांय कर रहा था, उसने अपनी कमीज उतारी और बगल में रख दिया| अचानक उसके मुह से अपनी बेबसी पर जोर की रुलाई फूट पड़ी, उसके दिमाग में अंदर पड़ा मरियल रग्घू घूम रहा था जिसे बचा पाने का हौसला वो खोता जा रहा था|
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 485

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on August 17, 2016 at 1:32pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ कल्पना भट्ट जी 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 17, 2016 at 9:56am
गरीबों की पुकार कौन सुने । मार्मिक कथा । हार्दिक बधाई सर।
Comment by विनय कुमार on August 15, 2016 at 6:07pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ सतविंदर कुमार जी 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 15, 2016 at 4:22pm
बहुत् खूब आदरणीय विनय कुमनक्सलवाद ने जाने कितने ही गरीबों की ऐसे शक में ही जान ले ली।सार्थक कथा के लिए हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
21 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल  के शेर पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख मन को सुकून मिला , आपको मेरे कुछ…"
23 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service