For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - उस मंज़र को खूनी मंज़र लिक्खा है ( गिरिराज भंडारी ) ज़मीन , मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब ।

आदरणीय समर कबीर साहब की ज़मीन पर एक ग़ज़ल
22   22   22   22   22   2

उस मंज़र को खूनी मंज़र लिक्खा है

***********************************

जिसने तुझको यार सिकंदर लिक्खा है

तय है उसने ख़ुद को कमतर लिक्खा है

 

समाचार में वो सुन कर आया होगा

एक दिये को जिसने दिनकर लिक्खा है

 

वो दर्पण जो शक़्ल छिपाना सीख गये

सोच समझ कर उनको पत्थर लिक्खा है

 

भाव मरे थे , जिस्म नहीं, तो भी मैने

उस मंज़र को खूनी मंज़र लिक्खा है

 

हाँ गलती उसने भी की होगी लेकिन

इंच इंच को तुमने गज भर लिक्खा है

 

क्षत विक्षत देखें हैं मैनें हृदय कई 

तब शब्दों को मैंने ख़ंज़र लिक्खा है

 

ख़ुद को जर्जर लिखने से बचकर उसने 

गढ्ढे को भी एक समन्दर लिक्खा है

 

पर्दे पीछे हाथ मिलाया है जिसने

जब लिख्खा है, थोड़ा बचकर लिक्खा है
***********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित  ( संशोधित )

 

Views: 954

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 28, 2016 at 6:54pm

आदरणीय समर भाई , ऐब ए हश्व की जानकारी के लिये आपका आभार , मै भर्ती के शब्द  को तो जानता था , पर मुझे लगा ऐब ए हश्व कोई और दोष होगा , इसी लिये पूछ लिया था । बात और आगे नही बढेगी , निश्चिंत रहिये , दोष जाना हुआ निकला ।

Comment by Samar kabeer on July 28, 2016 at 6:09pm
मेरे कहे को मान देने के लिये आपका धन्यवाद ।

"जिसने तुमको एक सिकंदर लिक्खा है"

इस मिसरे में "एक" शब्द भर्ती का है जो बह्र का वज़्न पूरा करने के लिये शामिल किया गया है ।

"सिकंदर लिक्खा है" में बात पूरी हो जाती है,जिस मिसरे में कोई भी भर्ती का शब्द लेकर मिसरे का वज़्न बह्र में किया जाता है उसे ऐब-ए-हश्व कहते हैं ,बात पूरी तरह स्पष्ट और साफ़ है ,इसे विस्तार से क्या बताऊँ ।
अब इस पर आप कोई चर्चा शुरू न कर देना, हा हा हा...क्यूँकि आजकल मैं नेटवर्क समस्या से जूझ रहा हूँ ,इसी कारण से मंच पर मेरी हाज़री बराबर नहीं हो पा रही है जिसका मुझे बहुत खेद है ।
उम्मीद है आपने और मंच ने बात समझ ली होगी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 28, 2016 at 7:16am

आदरणीय मनन भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 28, 2016 at 7:16am

आदरणीय समर भाई , आपकी ग़ज़ल की ज़मीन पर कही गज़ल को आपके पास कर दिया हो हार्दिक खुशी हुई । आपका हृदय से आभार ।

आपने जो सुधार सुझाया है , मुझे मंज़ूर है , मै आवश्यक सुधार कर लूँगा ।

दोष के विषय मे विस्तार से बता दें तो आगे के लिये  मेरे साथ साथ मंच के लिये भी अच्छा होगा ।  सलाह के लिये आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 28, 2016 at 7:10am

आदरणीय आशुतोष भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 28, 2016 at 7:10am

आदरणीया राजेश जी , ग़ज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका हृदय से अभार ।

Comment by Manan Kumar singh on July 27, 2016 at 10:48pm
एक अच्छी गजल के लिए बधाई आदरणीय गिरिराज भाई।
Comment by Samar kabeer on July 27, 2016 at 7:02pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,नाचीज़ की ज़मीन में बेहद उम्दा और मुरस्सा ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को,हर शैर अपनी जगह क़ाबिल-ए-सताइश है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

"जिसने तुमको एक सिकंदर लिक्खा है"

इस मिसरे में 'एक' शब्द भर्ती का है,इसे ऐब-ए-हश्व कहते हैं ,ये मिसरा इस तरह दुरुस्त हो सकता है अगर आप मुनासिब समझें :-

"जिसने तुझको यार सिकंदर लिक्खा है"
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 27, 2016 at 3:08pm

आदरणीय गिरिराज भाई सब ..मुझे यूं तो आपकी हर ग़ज़ल पसंद आती है मगर जो सर्वाधिक पसंद आयी उनमे से एक है यह शानदार ग़ज़ल ..आपकी सोच को नमन करते हुए सादर बधाई के साथ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2016 at 11:12am

वाह्ह्ह  बहुत बढ़िया बहुत बहुत बधाई आद० गिरिराज  जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
19 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service