For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहुत क़र्ज़ है पापा मुझ पर

बहुत कर्ज़ है पापा मुझ पर
कैसे अदा करूं|


बचपन में मैं जब छोटी थी
कैरम की जैसे गोटी थी
घूमा करती छत के ऊपर
कभी न टिकती एक जगह पर

उन सपनों को उन लम्हों को 
कैसे जुदा करूँ ।


सुबह सुबह उठ कर तुम पापा
सरदी में ना करते कांपा
मुझे उठा कर मुंह धुलवाते
शिशु कवितायें भी तुम सिखलाते
कहाँ छिप गये तुम तो जा कर
कैसे निदा  करूं|

मेरे विवाह के थे वह फेरे
आँखों पर रूमाल के डेरे
थकी कमर थी, थकी थी आँखें
टूट रहीं थीं बदन की शाखें
उन लम्हों को इन आँखों से
कैसे विदा करूं

..................आभा

अप्रकाशित एवं मौलिक 

Views: 570

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on July 25, 2016 at 7:32pm

वाह आदरणीया बहुत ही सुंदर मन को छूती अभिव्यक्ति है। उंगली उस उंगली को तरसती है जिसने उसे चलना सिखाया राह दिखाई। इस मार्मिक अनुभूति वाली  रचना के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by Abha saxena Doonwi on July 25, 2016 at 6:07pm

आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani sb जी  आपकी प्रतिक्रिया मिली मैं ह्रदय से आभारी  हूँ आपकी ..शुक्रिया ...   : )

Comment by Abha saxena Doonwi on July 25, 2016 at 6:04pm

आदरणीय समर कबीर  जी ,नमस्कार  आपकी  प्रतिक्रिया मुझे आगे  लिखने के लिए प्रेरित करतीं हैं हार्दिक अभिनन्दन  एवं नमन ...:)

Comment by Abha saxena Doonwi on July 25, 2016 at 6:03pm

आदरणीय राजेश कुमारी  जी,  आपकी  प्रतिक्रिया के लिए मैं ह्रदय से  आभारी हूँ ..नमन आपको ....:)

Comment by Samar kabeer on July 24, 2016 at 11:45pm
मोहतरमा आभा सक्सेना जी आदाब,बेहद जज़्बाती प्रस्तुति हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 24, 2016 at 1:03pm
बहुत कुछ बयां करती भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीया आभा सक्सेना जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 23, 2016 at 7:17pm

बहुत सुन्दर भावात्मक अभिव्यक्ति आद० आभा जी बहुत- बहुत बधाई| 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
13 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service