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ग़ज़ल - हर इक चेहरा बोल रहा वो लुटा हुआ है - गिरिराज भंडारी

22   22   22   22   22   22 ( बहरे मीर )

कोई किसी की अज़्मत पीछे छिपा हुआ है

कोई ले कर नाम किसी का बड़ा हुआ है

 

यातायात नियम से वो जो चलना चाहा

बीच सड़क में पड़ा दिखा, वो पिटा हुआ है

 

किसने लूटा कैसे लूटा कुछ समझाओ

हर इक चेहरा बोल रहा वो लुटा हुआ है

 

दूर खड़े तासीर न पूछो, छू के देखो

आग है कैसी ,इतना क्यूँ वो जला हुआ है

 

चौखट अलग अलग होती हैं, लेकिन यारो

सबका माथा किसी द्वार पर झुका हुआ है 

 

एक शिकायत कर के देखो, तब जानोगे

किसके अंदर क्या क्या कचरा भरा हुआ है

 

वो फिर दर्पण ले कर हमको दिखला दे ना

आओ साबित कर दें उसको मरा हुआ है 

 

मेरा क्या ? मै वैसे भी इक बंजारा हूँ

मेरा जाना तेरी हाँ तक, रुका हुआ है

********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ashok Kumar Raktale on July 21, 2016 at 7:54am

वाह ! वाह ! बहुत सुंदर गजल कही है आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.

Comment by रामबली गुप्ता on July 20, 2016 at 10:49pm
वाह आदरणीय इस गज़ल ने मन मोह लिया है। दिली दाद कुबूल फरमाएं।
Comment by Samar kabeer on July 20, 2016 at 5:14pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,बहुत बढ़िया और शानदा ग़ज़ल कही आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
एक बात जानना चाहूँगा कि "चौखट"शब्द स्त्रीलिंग है कि पुल्लिंग ?
Comment by Sushil Sarna on July 20, 2016 at 3:17pm

वो फिर दर्पण ले कर हमको दिखला दे ना
आओ साबित कर दें उसको मरा हुआ है

मेरा क्या ? मै वैसे भी इक बंजारा हूँ
मेरा जाना तेरी हाँ तक, रुका हुआ है
वाह शानदार अशआर ... भाव पूर्ण प्रस्तुति ... आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब इस दिलकश प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

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