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अनंगशेखर छंद.......महीन है विलासिनी

महीन है विलासिनी  

महीन हैंं विलासिनी तलाशती रही हवा, विकास के कगार नित्य छांटते ज़मीन हैं.

ज़मीन हैं विकास हेतु सेतु बंध, ईट वृन्द, रोपते मकान शान कांपते प्रवीण हैं.

प्रवीण हैं सुसभ्य लोग सृष्टि को संवारते, उजाड़ते असंत - कंत नोचते नवीन हैं.

नवीन हैं कुलीन बुद्ध सत्य को अलापते, परंतु तंत्र - मंत्र दक्ष काटते महीन हैं.

मौलिक व अप्रकाशित

रचनाकार.... केवल प्रसाद सत्यम

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 21, 2016 at 10:25am

बहुत सुन्दर छंद प्रवाह बद्ध बहुत अच्छा लगा हार्दिक बधाई केवल प्रसाद जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 19, 2016 at 4:32pm

मात्रिकता की कसौटी पर आपकी रचना सफल है भाई केवल प्रसाद जी. हार्दिक बधाइयाँ. 

लघु-गुरु की आवृति में अनंगशेखर वृत्त की रचना सरल नहीं है. प्रमाणिका छन्द के आगे,पंचचामर छन्द और इसके आगे अनंग शेखर दण्डक या वृत्त. इस हेतु आपके प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूँ. 

लेकिन पदों की संप्रेषणीयता यदि सहज नहीं है तो फिर रचना पुनर्प्रयास चाहती हैं. यदि चारों पंक्तियों के निहितार्थ भी स्पष्ट हो सके तो यह उचित होगा.

शुभेच्छाएँ

 

Comment by Shyam Narain Verma on June 18, 2016 at 3:10pm
बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय

कृपया ध्यान दे...

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