सड़क के मुख्य मार्ग से २१ कि.मी. कच्चे रास्ते पर धूल उड़ाती जीप चली जा रही थी। जीप में पीछे बैठे कर्मचारी ने मुझसे कहा साहब २ कि.मी. बाद सुनारिया गांव है, वहाँ का एक किसान पिछले ६-७ साल से नहीं मिल रहा है, जब देखो, तब झोपड़ी बंद मिलती है, आज मिल जाये, तो उसे निपटाना है,बहुत पुराना कर्ज बाकी है,मैंने कहा कितना बाकी है ? वो बोला बाकी तो ५००० है, पर ७-८ साल का बाकी है।
तभी जीप सुनारिया पहुँच गई , दो-तीन कर्मचारी तेजी से उतरे और झोपड़ी की तरफ लपके पर झोपड़ी बंद थी , दरवाजे में कांटे रखे हुये थे ,ताकी कोई जानवर अंदर ना जा सके , आसपास का सारा कचरा झोपड़ी के आसपास जमा हो गया था , बेतरतीब कवेलू बयां कर रहे थे की झोपड़ी ६-७ सालो से खाली है।
मैंने कहा की तडवी (मुखिया) को बुलाओ , तुरंत कर्मचारी तडवी के टापरे की और गये और उसे बताया की साहब आये है बुला रहे है , वो सिर पर साफा बाँध कर खटिया ले कर हाजिर हो गया। राम-राम साब कहकर पेड़ के नीचे बकरी जो धुप से बचने के लिए बैठी थी , उन्हें भगाकर खटिया लगा दी. बैठो साब। मैंने कहा क्यों तडवी ये सकरु कहाँ है ? वो बोला अरे साब सकरु ,उसकी लुगाई के साथ ६-७ साल पहले भाग गया। और उसका लड़का? लड़का तो इनके पहले चला गया , गाँव में एक आदमी को किसी ने मार दिया था, पुलिस को सकरु के लडके पर शक था , पुलिस पूछताछ कर रही थी तभी लड़का भाग गया , फिर पुलिस सकरु को परेशान करने लगी ,तो सकरु भी औरत को लेकर भाग गया ,तब से इनका कोई पता नहीं साब। और इनकी जमीन कौन जोत रहा है? कौन जोते साब सब खाली पड़ी है,ऐसे ही।
देख तडवी सकरु ने सहकारी समिति से ८ साल पहले कर्ज लिया था जो आज तक नहीं भरा , अब मेरे पास उसकी कुर्की के आदेश है , वो आये तो खबर करना और कर्ज जमा करने का उसे कहना। हाँ साब बराबर उसे समझाऊंगा और आयेगा तो खबर करूंगा। ऐसा कहकर हम आगे के गाँवों में संपर्क के लिये चल दिये।
दूसरे साल हम मार्च के महीने में फिर वसूली अभियान पर थे। जैसे ही सुनारिया गांव पहुंचे , कर्मचारी बोला , साहब शायद सकरु आया हुआ है ,झोपड़ा खुला हुआ है। हम सीधे सकरु के झोपड़े पर पहुंचे , बाहर एक खाट पर एक वृद्ध ,जिसकी सिर्फ आँखे दिखाई दे रही थी , बाल बिखरे थे , दाड़ी बड़ी हुई थी , एक मैला ,कुचेला साफा खाट के एक पाये पर लटका हुआ था , खाट के नीचे एक लोटा ,एक मिट्टी का पात्र , चिलम और कुछ कण्डो की राख थी ,जो शायद रात को जलाये गये होंगे। मैंने पूछा तेरा नाम सकरु है ?उसने सिर हिला कर हाँ किया , मैंने कहा सोसायटी से कर्ज लिया था ?उसने आँख के इशारे से अनभिञता जाहिर की. मैंने वसूली टीम में शामिल पुलिसकर्मी को बुलाया, तो पता चला की वो जीप से उतरकर किसी आदिवासी से बीड़ी मांग कर पी रहा था और अभी-अभी २ टापरों की तरफ गया है ,शायद कच्ची दारु तलाश करने गया होगा। तभी एक महिला अधेड़ उम्र की ,मरियल सी,खिचड़ी बाल,झोपड़े से बाहर आई और राम -राम कहकर दरवाजे के कोने में बैठ गई। मैंने पूछा तू इसकी औरत है? वो बोली होऊ साब। सोसायटी का क़र्ज़ क्यों नहीं भरते हो? वो बोली मैं क्या जानु साब! मेरे को नहीं मालुम। मैंने कहा क्यों, तुझे क्यों नहीं मालूम ? वो बोली मैं तो दूसरी हूँ , पहले वाली तो मर गई , मैं इसकी साली हूँ। मैंने कहा चलो तुम्हारी कहानी छोड़ो ,पहले पैसा भरो , उसने कहा अभी तो कुछ नहीं है साब। इस पर मैंने अपने कर्मचारियों को झोपड़े के अंदर जाने को कहा ,की देखो जप्ति योग्य जो भी सामान हो बाहर लाओ। थोड़ी देर में कर्मचारी ने बताया की साहब घर के अंदर दो बोरे गेहूं भरे पड़े है। मैंने कहा बाहर निकालो बोरे ,तुरंत कर्मचारी ने खींचकर बोरे बाहर पटक दिए। बिखरे दाने पर आस-पास के मुर्गे,मुर्गी टूट पड़े , तो महिला ने मुर्गे,मुर्गियों को भगाया और कहा की साब आप इस गेहूं को बेचकर कर्ज जमा करते हो तो कर दो, पर ऐसा नुकसान मत करो , मैंने बड़ी मेहनत से इन्हे इकठ्ठा किया है , तो मैंने कहा की ऐसी कौन सी मेहनत की तूने इन गेहूं के लिए ?
वह बोली साब ७ साल पहले ये मेरा आदमी पुलिस के डर से अपनी लुगाई के साथ ग्वालियर भाग गया। मेरे आदमी ने मुझे ५ साल से छोड़ रखा था इस कारण में भी इनके साथ ग्वालियर मजदूरी पर चली गई। हमको एक खदान में मजदूरी का काम मिल गया। एक दिन अचानक खदान के धंसने से मेरी बहन उसमे दब गई और उसकी मौत हो गई। उसकी मौत के बाद मैं इसके साथ पत्नी बनकर रहने लगी। २ साल बाद इसकी तबियत ख़राब रहने लगी। सरकारी अस्पताल में जाँच कराई तो डॉक्टर ने बताया की इसे टी.वी. हो गई है। शुरू मैं तो अस्पताल से मुफ्त में दवा मिलती रही, पर बाद में मुफ्त दवा बंद कर दी और मैं मजदूरी कर इसका इलाज़ भी कराती और पेट भी भरती। अभी ८ माह पहले डॉक्टर ने जवाब दे दिया की अब इसका कोई भरोसा नहीं है , कभी भी कुछ भी हो सकता है , मैं अकेली थी साब डर गई, उसी दिन इसे लेकर बस से यहाँ ले आई। यहाँ हमारी जमीन साब दूसरों ने हड़प ली थी , मैंने कहाँ कौन दूसरे? वो बोली, ये तडवी साब , इसने हमारी जमीन हथिया ली। मैं पटवारी ,तहसीलदार ,ग्राम पंचायत और सरपंच सब के पास फ़रियाद लेकर गई पर सबने भगा दिया। ये आदमी तो खाट से उठ नहीं पाता मैं अकेली कहाँ-२ दोडु ? तहसीलदार कहता है तेरे नाम का तो कूपन तक नहीं है , तू सकरु की औरत है ,क्या सबूत है?मेरे पास कुछ नहीं था साब फिर मैंने मेरी टापरी के पीछे के बाड़े में गेहूं लगाने का मन बनाया , में बाड़ा जोतने के लिए तडवी के पास बैल मांगने गई लेकिन उसने बैल देने से इंकार कर दिया। उसके डर से गाँव के भी किसी आदमी ने बैल नहीं दिये , तो मैंने मेरे हाथो से जमीन खोद-२ कर बाड़ा तैयार किया। फिर राशन की दूकान से १५ किलो गेहूं लेकर आई। मैंने कहा तेरे पास तो कूपन ही नहीं है ,१५ किलो गेहूं कैसे ले आई ?वो बोली साब बाटनिया (सेल्समैन) को ५० ऊपर से दिए तो उसने गेहूं दे दिये। फिर गेहूं के दाने बाड़े में बिखेर दिये और २ कि.मी. दूर हैण्डपम्प से रोज पानी ला ला कर गेहूं को पिलाया , एक दिन गेहूं जमीन के उपर दिखने लगे , फिर उसमे बाली आ गई और पांच दिन पहले गेहूं पक कर तैयार हो गये। मैंने हँसिये से गेहूं काट कर सुखाये और हाथो से मसल-मसल के गेहूं निकाले , एक -एक दाना बिन कर ये दो बोरे गेहूं तैयार कर आज ही घर में रखे थे और आप आ गये। आप ले जाओ साब। मैंने कहा की तुम क्या खाओगे? वो बोली भगवान जैसा रखेगा वैसे रहेंगे। मैं उसका वाकया सुन के हतप्रभ रह गया , ये मैंने कौन सा अपराध कर दिया , मैंने तुरंत बोरे कर्मचारियों से कहकर अंदर रखवाये ,में बुत बन गया था चुपचाप जीप में बैठकर शहर को लोट आया। ऐसे अनेक आदिवासी जिनके पास जमीन कम है वो आज भी इसी तरह का जीवन जी रहे है , शासन, प्रशासन के दावे खोखले दिखते है , वहां, न इन आदिवासियों के साथ कोई दिखता है और न किसी का विकास दिखता है
"मौलिक व अप्रकाशित"
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कहानी अच्छी और प्रभावकारी है आदरणीय राजेन्द्र कुमार दुबे जी. सामाजिक भयावहता उभर कर सामने आयी है. इस हेतु आप बधाई के पात्र हैं. यह अवश्य है कि आप तनिक और संयत हो कर रचनाओं को प्रस्तुत किया करें. तमाम टंकण त्रुटियाँ और कई जगह सटीक पंक्चुएशन की कमी संप्रेषणीयता के आड़े आ रही हैं. विश्वास है, अगली बार से आपकी संयत कोशिश से हम लाभान्वित होंगे.
सादर शुभकामनाएँ
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