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आवारगी – ( लघुकथा ) -

आवारगी – ( लघुकथा )  -

 मुंबई जाने वाली एक्सप्रेस गाडी में टिकट चैक करने पर टी सी गोस्वामी जी को दो लडके बारह तेरह साल की उम्र के बिना टिकट मिले!

"कहां जा रहे हो"!

"शहर"!

"कौनसे शहर"!

"मालूम नहीं, जहां तक गाडी लेजाय"!

"टिकट क्यों नहीं लिया"!

"साब टिकट के पैसे नहीं थे!तीन दिन से कुछ खाया भी नहीं है!गॉव में सूखा और अकाल है!भुखमरी फ़ैली है!सोचा था शहर जाकर कहीं ढावा या होटल में वर्तन धोने का काम कर लेंगे तो रोटी तो मिलती रहेगी"!

"अब बिना टिकट यात्रा करने के ज़ुर्म में जेल जाना पडेगा तो सब आवारगी भूल जाओगे"!

"साब जेल में रोटी तो मिलती रहेगी ना"!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by मिथिलेश वामनकर on May 17, 2016 at 12:58pm

शानदार और अपने कथ्य को शाब्दिक करने में सफल लघुकथा .... बहुत बहुत बधाई 

एक निवेदन -

------------------------------

आवारगी – ( लघुकथा ) 

टिकट चैक करते हुए टी.सी. की नज़र बारह तेरह साल के दो लड़कों पर गई टी.सी. को देखकर दोनों कोने में दुबकने लगे

"टिकट?"

"नहीं है साब"

"कहां जा रहे हो?"

"शहर"

"कौन से शहर?"

"मालूम नहीं, जहाँ गाड़ी ले जाए"

"टिकट क्यों नहीं लिया?"

"साब टिकट के पैसे नहीं थे तीन दिन से कुछ खाया भी नहीं है। गॉव में सूखा और अकाल से भुखमरी फ़ैली है। सोचा था शहर जाकर कहीं ढाबा या होटल में बर्तन धोने का काम कर लेंगे तो कम से कम रोटी तो मिलती रहेगी"

"अब बिना टिकट यात्रा करने के ज़ुर्म में जेल जाना पडेगा तो सब आवारगी भूल जाओगे"

"साब जेल में रोटी तो मिलती रहेगी ना?"

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 17, 2016 at 10:27am
कितने जेल पहुँच जाते हैं , रोटी की तलाश में , बहुत सही लघु - कथा , बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी , सादर।
Comment by Rahila on May 17, 2016 at 10:02am
सुना है कई लोग तो जानबूझकर जेल जाने की फिराक में रहते है क्योंकि रहने को छत और खाने को दो वक्त की रोटी तो नसीब हो जाती है वहाँ । बहुत अच्छी रचना आदरणीय तेजवीर सर जी !बहुत बधाई ।सादर नमन
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 17, 2016 at 9:49am
विकट समस्याओं का नहीं कोई निकट समाधान। मेरा देश महान। जेल की रोटी गले उतरे, तब न! मेहनत करके होटल की रोटी भली भी होती व मेहनत करते रहने को प्रेरित भी करती। बहुत बढ़िया कथानक लिया है। हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय तेज वीर सिंह जी बेहतरीन प्रस्तुति के लिए।
Comment by TEJ VEER SINGH on May 16, 2016 at 9:56pm

हार्दिक आभार आदरणीय जान गोरखपुरी जी!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 16, 2016 at 9:16pm
समसामयिक परिदृश्य में सार्थक लघुकथा हुयी है आदरणीय।हार्दिक बधाई।

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