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अंधेरे में रोशनी,

जीवन का सहारा ।

शाम को बिछड़ती,   

जब सुबह निहारा ।

इधर जब पौ फटी,  

तो देखो लो नजारा।  

क्या जानवर, पक्षी,

सब दिखे बे सहारा।

कोई रहम न करता ,

क्या कानून निराला ।

भूखे इंसान की रोटी,

बेटी हजम कर डाला। 

रोशनी की आस दिखती,

परंपरा का डर दे डाला ।

तन मन पर हजारों पीड़ा,  

सहन करके भी जी लेता ।  

अपनों का पेट भरता ,

अतीत को भूल जाता ।

मानवता को कलंकित ,

करने से नहीं चूकता ।

जहाँ में अज्ञान फैलाता,  

सदा भय आतंक दिखाता ।  

आपस में सबको लड़ाता,

कमाई सारी हड़प जाता ।

जग में ज्ञान की रोशनी,  

अपनों के पास ही रखता ।

धर्म जाति का ले सहारा,  

ज्ञान का दीप बुझा डाला ।

बाँट कर  समाज हमारा ,

 उल्लू सीधा कर डाला।  

जागो खोलो आँखें अपनी, 

धरा को ज्ञान से रोशन ।  

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 15, 2016 at 4:29pm
बहुत ख़ूब।बधाई आदरणीय।//देखो लो नज़ारा//या देख लो नज़ारा।सादर
Comment by Ram Ashery on May 15, 2016 at 7:23am

मेरे विचारों को पढ़ने और मेरे उत्साह वर्धन के लिए आपको मेरा सहृदय आभार  

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 14, 2016 at 6:26pm
रौशनी में अंधकार का चित्रण। बेहतरीन भावपूर्ण तीखी प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय राम Ashrey जी।

कृपया ध्यान दे...

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