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बाबा हम शर्मिंदा

चिंचोली की दशा देखकर बाबा हम शर्मिंदा हैं

छद्म भेष में प्रतिद्वंदी समाज को धोखा देता है

स्ंग्रहालय के संरक्षण मे करते कितना खोट

कुर्सी के लालच में फंस समाज पे करते चोट  

जर-जर होकर फट रही आज तेरी टाई कोट

तेरी निशानी मिटती देख बाबा हम शर्मिंदा है

चिंचोली की दशा देखकर बाबा हम शर्मिंदा हैं

छद्म भेष में प्रतिद्वंदी समाज को धोखा देता है

टंकण मशीन धूल खा रही मेरे कर्मो में खोट

भारत का संविधान लिख बाबा ने किया भेंट

तेरी धरोहर आज मिट रही खा अपनों की चोट

आस्तीन में साँप पल रहे बाबा हम शर्मिंदा है

चिंचोली की दशा देखकर बाबा हम शर्मिंदा हैं

छद्म भेष में प्रतिद्वंदी समाज को धोखा देता है

क्षत विक्षत तेरे अंग वस्त्र कहते किस्मत खोट   

साम दाम और दंड भेद अपनाकर ले रहे वोट

संसद में नेता खेल रहे हैं छीन हमारा वोट

गद्दारों की दशा देखकर बाबा हम शर्मिंदा है ।

हम शिक्षित हो संगठित नहीं बंधे हमारे होठ

तेरी रह से भटक गए है लगती पल पल चोट

दीमक आज नष्ट कर रहे तेरी कुर्सी मेज   

बाबा तेरी निशानी को बदहाल देखकर

चिंचोली की दशा देखकर बाबा हम शर्मिंदा हैं

मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

 

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