For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रफ़्ता रफ़्ता महके गुलशन साँसों के (ग़ज़ल राज )

२२  २२   २२   २२   २२  २

 

हँसते दर्पण जब जब तेरी आँखों के

रफ़्ता रफ़्ता महके गुलशन साँसों के

 

धीमे धीमे होती है ये  रात जवाँ

ख़्वाब मचलते हैं प्यासे पैमानों के

 

कैसे डूबे  भँवरों में  किश्ती नादां

सिखलाते हमको गड्ढे रुखसारों के

 

गोया नभ से चाँद उतर आया कोई        

चेह्रे से  हटते ही साए  बालों के

 

पार उतर आये हम  तूफां से बचकर

मस्त सफीने पाए  तेरी  बाहों  के 

 

खूब शफ़ा मिलती है गम के छालों को

जब  लगते हैं मर्हम तेरी बातों के

 

 अपने आँगन में भी महके फूल कभी 

 मौसम  आते जाएँ ये  मुलाकातों के

 

चाहे कितनी गर्दिश में हो हम दोनों  

टूटें ना ये  कौल हमारे  वादों के 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 800

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 12, 2016 at 9:43am

घर में बच्चे छुट्टियों में आये हुए हैं १५ मई को मुझे साथ भी लेकर जा रहे हैं आप भी मेरी  व्यस्तता समझ सकते हैं कई दिनों के बाद अति व्यस्तता के बावजूद आज वक़्त निकाल कर पोस्ट पर आना हुआ |आपकी बातों से पूर्णतः सहमत हूँ किन्तु इस मिसरे में शुरू से ही गड़बड़ मुलाक़ात शब्द को लेकर हो रही है मूलाकात कर नहीं सकती शब्द की यहाँ डीमांड है इसी लिए ये रस्साकशी चल रही है | आपको ग़ज़ल बढ़िया लगी हार्दिक आभार आ० सौरभ जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 11:52pm

बढिया.. ! 

मगर अचानक मिसरा आया - मौसम  आते जाएँ ये  मुलाकातों के  

आदरणीया, हलवे के मुलायम मधुर ग्रास में गोया कंकड़ पड़ गया !  

आप ऐसी बहर को मात्रिक बहर कहती हैं न तो समकल के बाद समकल और त्रिकल के बाद त्रिकल वाला फ़ॉर्मूला क्यों नहीं अपनातीं ? -

१. सम सम सम सम सम लिखते हैं 

२. विषम विषम पर सम लिखते हैं 

जय हो.. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 1, 2016 at 3:40pm

जयनित कुमार जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार आपका |

Comment by जयनित कुमार मेहता on April 30, 2016 at 8:35pm
आ. राजेश कुमारी जी! बहुत सुन्दर और रूमानियत से भरपूर ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकारें!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 28, 2016 at 6:11pm

आ०  रवि भैया ,ग़ज़ल पर आपकी शिरकत और दाद से प्रसन्न हूँ इस ग़ज़ल पर एक स्वस्थ चर्चा हो रही है इस ग़ज़ल के लिए ये बहुत अच्छा संकेत है जब लोग किसी रचना की रूह में उतर कर समीक्षा करते हैं तो उस रचना का समझो भाग्य खुल जाता है तस्दीक जी ,मिथिलेश भैया के साथ साथ आप सभी के विचारों का स्वागत करती हूँ मिसरे तो मूल पोस्ट में सुधार चुकी हूँ इसमें भी एडिट कर लूँगी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 28, 2016 at 6:06pm

आ० धर्मेन्द्र जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया |

Comment by Ravi Shukla on April 28, 2016 at 12:08pm

आदरणीयाा राजेश दीदी बड़ी खूबसूरत रवायती अंदाज की गजल हुई है दिली दाद और मुबारक बाद हाजिर है पढ़ते समय हमेंं भी अंतिम दो शेेर पर प्रवाह में कठिनाई आइै थी पर ये जानते हैै कि शिल्‍प में कही कोई चूक नहीं है फिर आपकी गजल पर हुई चर्चा भी पढ़ी निवेदन सिफ इतना है कि अच्‍छी गजल अगर मिसरों मेंं थोड़े से संशोधन से और अच्‍छी बेदाग हो सकती है तो आप अवश्‍य करेंगी । 

छाेटा मुह बड़ी बात न लगे तो  

कभी न टूटे कौल हमारे वादों के  पर भी विचार कर सकती है आप सादर 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 27, 2016 at 10:38pm

बड़ी ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है आदरणीया राजेश कुमारी जी, दाद कुबूल करें। बाकी मिथिलेश जी कह ही चुके हैं।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 27, 2016 at 10:03am

मिथिलेश भैय्या ,ग़ज़ल पर आपकी दाद ने होंसला बढाया तहे दिल से शुक्रिया |मिसरों पर आपकी इस्स्लाह काबिले गौर है 

दरअसल मैं अंतिम शेर के मिसरे में ना के प्रयोग से बचना चाह रही थी किन्तु मेरे जानकार एक वरिष्ट शायर ने कहा कोई प्रोब्लम नहीं है 

आपका क्या ख़याल है इन्हें देखें ---

अपने आँगन में भी महके फूल कभी 

 मौसम आते  जाएँ ये मुलाकातों के---आपने सही सुझाया (मैंने पहले ऐसे भी कर के देखा था किन्तु कई बार हम खुद गलती कर बैठते हैं) 

 

चाहे कितनी गर्दिश में हो हम दोनों  

 टूटें ना  ये  कौल हमारे  वादों के


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 27, 2016 at 9:58am

आ० नीलेश भैय्या आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ अब मिसरों को इस तरह संशोधित कर रही हूँ नजरें सानी करें प्लीज 

अपने आँगन में भी महके फूल कभी 

 मौसम आये  जाएँ ये मुलाकातों के

 

चाहे कितनी गर्दिश में हो हम दोनों  

 टूटें ना  ये  कौल हमारे  वादों के -----(यहाँ ना का प्रयोग करना पड़ रहा है एक बड़े वरिष्ठ शायर की इस्स्लाह से ये हिम्मत की है आपकी क्या राय है |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service