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ग़ज़ल (पास है वह कहाँ दूर है )

ग़ज़ल (पास है वह कहाँ दूर है )

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212 -------212 --------212

जो तसव्वुर में मामूर है |

पास है वह कहाँ दूर  है |

आइने पर न तुहमत रखो

वह तो पहले से मग़रूर है |

मुस्करा उनके हर ज़ुल्म पर

यह ही उल्फ़त का दस्तूर है |

उनके दीदार का है असर

मेरे रुख पे न यूँ नूर है |

बे वफ़ाई है वह हुस्न की

जो ज़माने में मशहूर है |

छोड़ जाये गली किस तरह

दिल के हाथों वो  मजबूर है|

अज़्मे उल्फ़त न तस्दीक़ कर

फ़ितरते हुस्न तो कूर  है |

(मौलिक व अप्रकाशित )  

 

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Comment

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 4, 2016 at 8:26pm

मोहतरम जनाब तेजवीर   साहिब  ,  आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी। ...

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 4, 2016 at 8:25pm

मोहतरम जनाब गिरिराज  साहिब  ,  आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी। ... सर जी देखने में तो दोनों सानी मिसरे एक जैसे लग रहे हैं मगर मेरे मिसरे में जो ज़ाहिरा किया गया है वह है कि आशिक़ के रुख पर तो उदासी रहती है उसके रुख पर नूर यूँही नहीं आगया वह तो महबूब के दीदार का असर है। ...... यूँ शब्द को प्रश्न वाचक बनाकर शब्द असर से जोड़ा गया है ,,,,शुक्रिया

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 4, 2016 at 8:14pm

मोहतरम जनाब रवि शुक्ल  साहिब  ,  आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी। ...

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 4, 2016 at 8:13pm

मोहतरमा कान्ता  साहिबा  ,  आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी। ...

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 4, 2016 at 8:12pm

मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब ,  आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी। ...

Comment by TEJ VEER SINGH on March 4, 2016 at 5:36pm

 हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी! बेहतरीन गज़ल!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 3, 2016 at 10:28am

आदरणीय तस्दीक भाई , छोटी बहर मे बढिया ग़ज़ल कही आपने , दिली मुबारक बाद स्वीकार करें ।

भाव के हिसाब से इन दो कहन मे से कौन सा सही होगा एक बार सोचियेगा

उनके दीदार का है असर             उनके दीदार का है असर

मेरे रुख पे न यूँ नूर है |              मेरे रुख़ पे ये जो नूर है   

Comment by Ravi Shukla on March 2, 2016 at 6:02pm

आदरणीय तस्‍दीक अहमद जी  बधाई

Comment by kanta roy on March 2, 2016 at 4:17pm
मुस्करा उनके हर ज़ुल्म पर
यह ही उल्फ़त का दस्तूर है |------

बेहद शानदार गजल कही है आपने आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी । बधाई कबूल कीजियेगा ।
Comment by Samar kabeer on March 2, 2016 at 3:34pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही भाई,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ।

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