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बहर :- 122/122/122/122

हमें प्यार पहलू तू फिर से पढ़ा दे
न चुप बैठ ऐसे हदें सब मिटा दे

तकिया नकूशी रिवाजे बुझा के
तू मजहब भुला प्यार दीपक जला दे

मेरे गांव की तंग गलियों में उनसे
मेरा आमना सामना ही करा दे

बनाये मेरे साथ माटी खिलौने
वो बचपन वो घोड़े वो हांथी दिला दे

वो कश्ती वो बादल वो सावन वो झूले
मुझे आज सारे के सारे हि ला दे

समय तोड़ हद और दे फिर जवानी
मुहब्बत अता कर वो मैकश अदा दे

मेरे साथ खींची वो तस्वीर उनकी
बटुये की थैलों में क्रमशः सजा दे

छिपा के रखी प्रेम की पातियां सब
किताबों के पन्नों में नियमतः छिपा दे

मुझे झूमने और गाने भी दे अब
जो दी है मुहब्बत तो साहिल पता दे
मौलिक /अप्रकाशित

आमोद बिन्दौरी

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2016 at 11:42am

क्या कहने आ0 भाई आमोद बिंदोरी जी । हार्दिक बधाई ।

Comment by amod shrivastav (bindouri) on February 16, 2016 at 8:06pm
आ शर्मा जी सादर नमन आभार
Comment by Shyam Narain Verma on February 16, 2016 at 6:10pm
सुन्दर ग़ज़ल हेतु बधाई

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