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गज़ल -- जिधर ग़ुज़रे उधर बांटे बुखार अपना ( गिरिराज भंडारी )

1222     1222     1222 

बजाहिर जो लगे हैं ग़मगुसार अपना

छिपा लाये हैं फूलों में वो ख़ार अपना

 

बहुत गर्मी यहाँ मौसम ने दी हमको

जिधर ग़ुज़रे उधर बांटे बुखार अपना

 

जो लूटे हैं वो वापस क्या हमें देंगे

चलो हम ही कहीं खोजें करार अपना

 

ज़रा रुकना, उन्हें गाली तो दे आयें 

नहीं अच्छा रहे बाक़ी उधार अपना

 

बुढ़ापा बोलता तो है , सहारा  ले

मगर अब भी उठाता हूँ,मैं भार अपना

 

मै सीरत , सादगी से खिंच के आया हूँ  

तू ज़ुल्फों को, न चेह्रे को, निखार अपना

 

तेरे दफ्तर की नाराजी परे ही रख

न घर में यूँ तू ग़ुस्से को उतार अपना

 

तेरी इंसानियत कोई न सूंघेगा

गुमाँ में यूँ न इक लम्हा गुज़ार अपना 

*****************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2016 at 8:12pm

आदरनीय तेज वीर भाई , गज़ल पर आपकी उपस्थिति और उत्साह वर्धन के लिये आपका हृर्दय से आभारी हूँ ।
मुझे एक खुशी अलग से दी आपने , मिज़ाज़  दोनो के मिल रहे हैं , आभार आपका ।

Comment by maharshi tripathi on January 12, 2016 at 7:51pm
हर शेर काबिले तारीफ है,बधाई आ. गिरिराज sar!!
Comment by TEJ VEER SINGH on January 12, 2016 at 7:27pm

हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी!एक एक शेर गज़ब का है!बेहतरी गज़ल!

ज़रा रुकना उन्हें गाली तो दे आयें,नहीं अच्छा रहे बाकी उधार अपना!

यह शेर मुझे बहुत पसंद आया क्योंकि मेरे मिज़ाज़ से मेल खाता है!पुनः बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2016 at 7:09pm

आदरनीय समर भाई , आपका पुनः आभार , जब चेहरा को 22 लेना ही है तो चेहरा क्यों लिखना , ऐसे मे 212 का भ्रम होता है , इसी लिये मै चेह्रा ही लिखता हूँ , ताकि भ्र की स्थिति न बने । आपका पुनः आभार ।

Comment by Samar kabeer on January 12, 2016 at 6:30pm
चेहरा शब्द सही पढ़ने में नहीं आया,और कोई बात नहीं है,ग़ज़ल पर पुनः बधाई |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2016 at 6:04pm

आदरणीय मनन भाई , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2016 at 6:02pm

आदरणीय समर भाई , हौसला अफज़ाईका तहे दिल से शुक्रिया आपका ।

आदरनीय छ्टे शे र मे कोई बहुत बड़ी बात नही कही है - मै ये कहना चाहता हूँ कि ,  मै जिसकी सादगी और सीरत देख के प्रभावित हो कर मिल्लने के लिये गया तो किसी को आया देख वो संवरने लगे ,  उनसे कह रहा हूँ कि , सँवरने की ज़रूरत नही है , मै आपकी सादगी पर फिदा होके आया हँ ।  ऐसी कठिन बात नही है इसमे , आपका इशारा किसी कहन की गलती बताना हो तो और बात , कृपया साफ लफ्ज़ों मे कहें , अगर कोई गलती लग रही हो तो , ताकि मै सुधार सकूँ ।

Comment by Manan Kumar singh on January 12, 2016 at 4:57pm
' छिपा लाये फूलों में खार अपना',बहुत बढ़िया आदरणीय गिरिराज भाई,दिली बधाइयाँ गजल के लिए।
Comment by Samar kabeer on January 12, 2016 at 10:41am
जनाब गिरिराज भंडारी जी अदाब्,अच्छी ग़ज़ल कही आपने,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं,ग़ज़ल का छटा शैर समझ नहीं आया ?

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