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बचपन से ही मेरी माँ ने मुझे फ्राक की जगह पेंट शर्ट पहनाया, मेरा राजा बेटा बड़ा बहादुर है,सुन सुन बड़ी हुई। पर आज क्यों मेरा नाम ले लेकर रो रही हैं।
"क्या इसी दिन के लिए पढाया लिखाया अपने पैरों पर खड़ा किया?"
"माँ यह क्या घिसा पिटा डायलॉग,मैं ऐसा क्या गलत कर रही हूँ? मैं नहीं प्रदर्शित कर सकती अपने आप को ट्रे लेकर चाय के कपों के समान।"
"तो कोई अपने मन का लड़का ढूंढ ले,तुझे इतनी आजादी तो दी है।"
"क्या लडका ढूंढ लूँ,सब लिजलिजे, ढुलमुल।एक फटकार में पेंट गीला कर दें।"
"तो अपने पापा जैसा ढूंढ ले,शेर दिल।"
"पापा जैसा शेर दिल जो तुम्हारे सामने हमेशा भीगी बिल्ली बने रहते हैं।"
"मुझे नहीं सुहाते ऐसे लडके ,मुझे तो पसंद है मेरे बचपन की सहेली, मैं उसी के साथ जीवन गुजारना चाहती हूं। उसी के साथ शादी करना चाहती हूँ। शादी तन की नहीं मन की जरूरत है।"

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पवन जैन, जबलपुर।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Pawan Jain on January 13, 2016 at 9:50am

आदरणीय गिरिराज भंडारी सा0 हौसला अफजाई हेतु आभार।सभी वरिष्ठों से मार्ग दर्शन की आकांक्षा है।

Comment by Pawan Jain on January 13, 2016 at 9:45am

आदरणीय नीता जी आभार।


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Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2016 at 3:55pm

एक दम नये विषय को कथा मे पिरोने के लिये आपको हार्दिक बधाई , आदरनीय पवन भाई ।

Comment by Nita Kasar on January 11, 2016 at 9:45pm
बेटे को पाने की आकांक्षा कुछ यूँ सिर चढ़ कर बोलती है कि माँयें बेटी को बेटे के रूप में कुछ इस से देखती है परिणाम स्पष्ट है कि शादी उन्है तन की नही मन की ज़रूरत नजर आती है ।नये विषय पर लिखी कथा के लिये बधाई आपको आद०पवन जैन जी ।
Comment by Pawan Jain on January 10, 2016 at 8:37am

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी बहुत बहुत धन्यवाद।

Comment by Pawan Jain on January 10, 2016 at 8:35am

आभार आदरणीय समर कबीर साहिब,हौसलाअफजाई को शुक्रिया।

Comment by Samar kabeer on January 9, 2016 at 5:51pm
जनाब पवन जैन साहिब आदाब,इस सुंदर लघुकथा के लिये बधाई स्वीकार करें,
Comment by Shyam Narain Verma on January 9, 2016 at 4:18pm
सुन्दर लघुकथा के लिये आपको बधाई ॥
Comment by Pawan Jain on January 9, 2016 at 3:33pm

आदरणीय,शहजाद जी सर जी का आदेश मेरा प्रयास।धन्यवाद आपकी समीक्षा हेतु।

Comment by Pawan Jain on January 9, 2016 at 3:29pm

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