For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - कहीं पंडित मरे, टूटे थे मन्दिर - गिरिराज भंडारी

1222    1222    122

हथेली खून से जो तर हुई थी

न जाने क्यूँ यहाँ रहबर हुई थी

 

जो सच जाना उसे सहना कठिन था

ज़बाँ तो इसलिये बाहर हुई थी

 

कि उनके नाम में धोखा छिपा है

समझ धीरे सहीं , घर घर हुई थी  

 

वही इक बात जो थी प्रश्न हमको

वही आगे बढ़ी , उत्तर हुई थी

 

निकाले जब गये सब ओहदों से

ज़मीं बस उस समय बेहतर हुई थी

 

कहीं पंडित मरे, टूटे थे मन्दिर

कहो कब आँख किसकी तर हुई थी ?

 

हाँ, नफरत खून में शामिल है , इनके

तबाही इस लिये दर दर हुई थी

*******************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 600

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 5, 2015 at 8:09pm

आदरणीय आशुतोष भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 5, 2015 at 8:08pm

आदरणीय बैज नाथ भाई , हौसला अफज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 5, 2015 at 8:07pm

आदरणीय तेज़ वीर भाई , गज़ल  की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 5, 2015 at 8:07pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 7:06pm

निकाले जब गये सब ओहदों से
ज़मीं बस उस समय बेहतर हुई थी----वाह !!! बहुत ही संववंशील रचना हुई है ये आदरणीय गिरिराज जी। बधाई !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 4, 2015 at 5:31pm

आदरणीय  गिरिराज भाई साब ..आज काफी दिनों बाद मंच से जुड़ पाया ..और आपकी इस शानदार वर्तमान सन्दर्भों को समाहित किये हुए इस ग़ज़ल को पढने का मौका मिला ..लाजबाब इस ग़ज़ल के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on December 4, 2015 at 3:16pm

                                      हाँ, नफरत खून में शामिल है , इनके

                                       तबाही इस लिये दर दर हुई थी

आदरणीय भंडारी साहेब ....वाह -वाह .....बहुत खूब! बधाई स्वीकार करें|

                                     

Comment by TEJ VEER SINGH on December 4, 2015 at 12:36pm

हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी!बेहतरीन प्रस्तुति!एक एक लफ़्ज़ बेशकीमती!पुनः बधाई!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2015 at 11:43am

कहीं पंडित मरे, टूटे थे मन्दिर

कहो कब आँख किसकी तर हुई थी ?

 

हाँ, नफरत खून में शामिल है , इनके

तबाही इस लिये दर दर हुई थी

आ० भाई गिरिराज जी इस   सुन्दर  ग़ज़ल ke   लिए हार्दिक बधाई  l

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service