For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल
2212 2212 2212
कुछ कुछ उठा कर कब्र से लाया गया
बिसरा हुआ संगीत सुनवाया गया ।
मतदान की होते यहाँ पर घोषणा
फिर कुंद वह हथियार चमकाया गया।
देते रहे गाली परस्पर थे बहुत
मिलकर गले उनके लिपट जाया गया।
देते रहे थे घाव अबतक तो वही
फिर से सभी जख्मों को' धुलवाया गया।
कितने अपावन हो गये जो साथ थे
जो था अपावन नेह नहलाया गया।
हम-तुम हमेशा साथ थे आगे रहें
ऐसा अभी फरमान चिपकाया गया।
घर-घर लगायी आग सब सोये रहे
संपर्क कर फिर वर्ग दुहराया गया।
वैरी रहे होंगे कभी अब तो नहीं
चल भूलते जो अब रे' दफनाया गया।
कितना अभी पीछे रहाअपना वतन
हो याद कब झंडा था' फहराया गया।
कुछ हो भला पूरी अभी जन की रजा
देखें न कितना वक्त है जाया गया।
भर आ गया अपना गला किससे कहें
बेदर्द उनका गीत कब गाया गया?
'मौलिक व अप्रकाशित'@

Views: 624

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 7, 2015 at 11:08pm

सुझाव को सहर्ष मान देने के लिए आभार भाई मनन जी 

Comment by Manan Kumar singh on November 7, 2015 at 10:50pm
आदरणीया पढ़ें
Comment by Manan Kumar singh on November 7, 2015 at 10:49pm
आदरजय प्राचीजी शुक्रिया तथा सलाह बिलकुल मान्य है;परिमार्जन में आपका योगदान सराहनीय !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 7, 2015 at 10:28pm

चुनावी राजनीति पर बढ़िया अशआर कहे हैं आ० मनन जी हार्दिक बधाई

पीछे पड़ा ...वतन के साथ उचित प्रतीत नहीं हो रहा ...पड़ा  के स्थान पर खड़ा या रहा किया जाए तो ?

एक बार पुनः इस सामयिक प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई

Comment by Manan Kumar singh on November 5, 2015 at 11:15pm
आदरणीय बैजनाथ जी,शेर दर शेर विश्लेषण के लिए आपका बहुत बहुत आभार
Comment by Manan Kumar singh on November 5, 2015 at 11:09pm
आबिद भाई आभार आपका
Comment by Manan Kumar singh on November 5, 2015 at 11:00pm
आदरणीय सुशील जी,आभार आपका
Comment by Manan Kumar singh on November 5, 2015 at 10:58pm
आदरणीय गिरिराज भाई,प्रेरणा देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपका
Comment by Manan Kumar singh on November 5, 2015 at 10:56pm
आदरणीय मिथिलेश जी,आभार
Comment by Abid ali mansoori on November 5, 2015 at 4:28pm

बहुत खूब आदरणीय मनन भाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहे*******तन झुलसे नित ताप से, साँस हुई बेहाल।सूर्य घूमता फिर  रहा,  नभ में जैसे…"
33 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी को सादर अभिवादन।"
38 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
4 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
4 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"ऐसे ऐसे शेर नूर ने इस नग़मे में कह डाले सच कहता हूँ पढ़ने वाला सच ही पगला जाएगा :)) बेहद खूबसूरत…"
12 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
19 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा

.ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा, मुझ को बुनने वाला बुनकर ख़ुद ही पगला जाएगा. . इश्क़ के…See More
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय रवि भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो  कर  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. नीलेश भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति  और  सराहना के लिए  आपका आभार  ये समंदर ठीक है,…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"शुक्रिया आ. रवि सर "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. रवि शुक्ला जी. //हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा मे ंअहसास को मूर्त रूप से…"
yesterday
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"वाह वाह आदरणीय नीलेश जी पहली ही गेंद सीमारेखा के पार करने पर बल्लेबाज को शाबाशी मिलती है मतले से…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service