For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“आज उदास क्यूँ हो बेटा क्या सोच रहे हो ”? जलेबी पकड़ाते हुए पापा ने उसकी आँखों में देखते हुए  पूछा| “पापा मैं एक बहुत बड़ी दुविधा में हूँ आपको तो पता है मैं चित्रकला और काव्य लेखन  दोनों ही  विधाओं को पसंद करता हूँ तथा दिन रात मेहनत करता हूँ आगे अपना कैरियर भी इन्हीं में से किसी एक को लेकर बनाना चाहता हूँ” वैभव ने कहा | “तो फिर इसमें कैसी दुविधा है बेटा”?

“पापा मैं तो दोनों में  ही अपने को कुशल समझता था पर चुनाव करने में असमंजस में था तो मैंने सोचा क्यूँ न मैं इन विधाओं के पारंगतों से ही पूछूँ पहले मैं चित्रकला  गुरु के पास गया तो उन्होंने कहा- “तुम अच्छे लेखक हो  बहुत अच्छी कवितायेँ  लिखते हो उसी में कैरियर बनाओ”| फिर मैं साहित्य गुरु के पास गया तो उन्होंने कहा- “तुम चित्रकला में निपुण हो बहुत शानदार पेंटिंग करते हो , तुम्हारी कवितायेँ अच्छी तो हैं पर कोई ख़ास बात नहीं है उनमें सो चित्रकला चुन सकते हो”

 तो पापा मैं तो दोनों में ही फेल हो गया अब क्या करना है इसी पशोपाश में हूँ” वैभव ने रुंआसा होते हुए कहा |

“बेटा तुम अपने को फेल कैसे कह सकते हो सिक्के के दूसरे पहलू  को भी तो देखो उन दोनों ने तुम्हे दूसरी विधा में निपुण भी तो बताया है तो तुम दोनों में ही निपुण हुए न? दुनिया बहुत व्यवहारिक  हो गई है आजकल”|

 फिर कुछ रूककर ... “मेरी एक बात समझने की कोशिश करो यदि तुम  मेरे पुत्र न होते और मुझ से बढ़िया जलेबी बनाते और मेरे वाले व्यवसाय को अपनाने की बात करते तो मैं भी यही कहता कि तुम दूसरे व्यवसाय को चुनो तुम्हारी जलेबी में खास बात नहीं है”

“समझ गया पापा”       

(मौलिक एवं अप्रकाशित)   

Views: 743

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2015 at 8:07pm

प्रिय प्रतिभा जी ,आपको  ये लघु कथा पसंद आई दिल से आभार आपका मेरा लिखना सार्थक हो गया | 

Comment by pratibha pande on November 3, 2015 at 7:12pm

ये जलेबी वाला पंच क्या खूब निकाला आपने आदरणीया ,iपिता ने एक सीधे सरल वाक्य में बेटे को वो बात समझा दी जो मोटीशुल्क लेकर भी कोई 'कर्रियर काउंसलर 'नहीं समझा पाता,बधाई इस उत्कृष्ट लघु कथा पर आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2015 at 5:28pm

मिथिलेश भैया ,लघु कथा के सर्वप्रथम  पाठक होने और सराहना करने के लिए आपका बहुत- बहुत आभार .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 3, 2015 at 5:21pm

आदरणीया राजेश दीदी बहुत बढ़िया और स्पष्ट सन्देश के साथ एक सार्थक लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति पर आपको बहुत बहुत बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"स्वागतम"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"जी बहुत शुक्रिया आदरणीय चेतन प्रकाश जी "
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.लक्ष्मण सिंह मुसाफिर साहब,  अच्छी ग़ज़ल हुई, और बेहतर निखार सकते आप । लेकिन  आ.श्री…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.मिथिलेश वामनकर साहब,  अतिशय आभार आपका, प्रोत्साहन हेतु !"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"देर आयद दुरुस्त आयद,  आ.नीलेश नूर साहब,  मुशायर की रौनक  लौट आयी। बहुत अच्छी ग़ज़ल…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
" ,आ, नीलेशजी कुल मिलाकर बहुत बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई,  जनाब!"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।  गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। भाई तिलकराज जी द्वार…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए आभार।…"
8 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तितलियों पर अपने खूब पकड़ा है। इस पर मेरा ध्यान नहीं गया। "
8 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी नमस्कार बहुत- बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त निकाला विशेष बधाई के लिए भी…"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service