For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कोख जाया [लघु कथा ]

नवेली बहू और बेटे के साथ आँगन में मेहमान जमे थे I तभी  जोर जोर से तालियाँ और मर्दानी आवाजों में गाते , चार हिजड़े घर में आ गए  I  घबरा कर वो अन्दर आ गई I तालियों की आवाज़ चेतना में हथौड़े चला रही थी I

"बहू वो नेग लेने आये हैं I तू भी बाहर आ जा ,दूल्हे की अम्मा है तू " सास अन्दर आ गई थी I "क्या हुआ ? थक गई है ?रहने दे ,आराम कर " I

सास के बाहर जाते ही वो  पलंग पर गिर गई Iआँखों से यादें बहकर चादर भिगोने लगीं Iपचास साल पहले उसके घर भी आये थे ये ,तालियाँ बजाते नेग लेने नहीं , छोटे भाई को ले जाने I बैठक में बाउजी के साथ बात चीत चल रही थी Iअम्मा बाहर खड़ी रोये जा रही थी Iवो पांच साल की बच्ची समझ नहीं पा रही रही थी कि भैया को क्यों ले जा रहे हैं I सब कुछ बदल गया  उसके बाद I अम्मा विक्षिप्त हो गई  I अंत के दिनों में अपने कमरे में बैठी तालियाँ बजाती  रहती थीI

"आप भी ना , बाहर से ही नेग वेग देकर विदा करते I आँगन में ही बुला लिया उछल कूद करने "Iकमरे के बाहर चल रही सास ससुर की बातों ने उसे यादों से बाहर खींच लिया I

"क्यों क्या कोई अछूत हैं वो बेचारे ?वो भी किसी के कोख जाए हैं "I

यादों की कन्दरा से आती  उसकी अम्मा की प्रसव पीड़ा की चीखें उसके कानों में गूँजने लगी थींI  

.

मौलिक व् अप्रकाशित 

Views: 780

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2015 at 8:25pm

उफ्फ्फ .... कितनी मार्मिक लघु कथा है हालाँकि ऐसी घटनाएँ देखी भी हैं और सुनी भी हैं किन्तु आपका प्रस्तुतीकरण बहुत प्रभावशाली है 

जो लघु कथा को विशिष्ट बनाता है आपको दिल से बधाई प्रतिभा जी |

Comment by Janki wahie on November 3, 2015 at 12:47pm
अद्भुत कथा मन को अंदर तक भिगो गई। निःशब्द हूँ।बधाई।
Comment by savitamishra on November 2, 2015 at 11:53pm

वाह क्या बात हैं आदरणीया _/\_सादर

बस एक बात न समझे 50 साल पहले???बहू सोच रही न????

Comment by Rahila on November 2, 2015 at 8:44pm
तहे दिल से बधाई स्वीकार कीजिये आदरणीया प्रतिभा जी! मेरे पास शब्द कम है इस रचना की तारीफ के लिये । सादर नमन आपकी लेखनी को ।
Comment by TEJ VEER SINGH on November 2, 2015 at 7:31pm

हार्दिक बधाई आदरणीय प्रतिभा जी!बहुत ही संवेदनशील और मन को झकझोर देने वाली सशक्त प्रस्तुति !आपने इस लघुकथा के माध्यम से उन परिवारों के दर्द को उजागर किया है जो इस तरह के बच्चों के जन्म की पीडा भोगते हैं!बेहतरीन लघुकथा!

Comment by pratibha pande on November 2, 2015 at 7:28pm

आदरणीय उस्मानी जी , उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से आपने कथा का अनुमोदन किया ,मेरा लिखना सार्थक हुआ ,आपका ह्रदय तल से आभार  

Comment by pratibha pande on November 2, 2015 at 7:17pm

 आदरणीय मिथिलेश जी ,कथा पर सकारात्मक प्रतिक्रिया कर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए आपका ह्रदयतल से आभार 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 2, 2015 at 6:35pm
अब तक की पढ़ी हुई मार्मिक लघु कथाओं में सबसे अच्छी झकझोर देने वाली, रुला देने वाली, भेदभाव न करने का अत्यावश्यक संदेश वाहक इस उत्कृष्ट रचना के सृजन के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको आदरणीया Pratibha Pandey जी। उत्कृष्ट सार्थक सटीक शीर्षक से लेकर सम्पूर्ण कथा तक शब्द चयन व प्रवाह पूर्ण भाषा शैली हर बात पाठकों को मोह लेने की क्षमता लिए हुए है। कह सकते हैं कि मंच पर एक और कालजयी लघु कथा का प्रकाशन हुआ है। सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 2, 2015 at 3:28pm

आदरणीया प्रतिभा जी आपकी प्रस्तुति ने भीतर तक भीगा दिया. बहुत ही मार्मिक कथा हुई है. सीधा दिल में उतर गई. आपने पीड़ा को विभिन्न आयामों के परिप्रेक्ष्य में सार्थक शब्द दिए है. पंच लाइन दिल चीर देती है. नमन आपकी लेखनी को.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
18 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service