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अब आँखों से ही बरसेंगे

अंबर से मेघ नहीं बरसे

अब आँखों से ही बरसेंगे

 

शोक है

मनी नहीं खुशियाँ

गाँव में इस बार

दशहरा पर

असमय गर्भ पात हुआ है

गिरा है गर्भ

धान्य का धरा पर

कृषक के समक्ष

संकट विशाल है

पड़ा फिर से  अकाल है

खाने के एक निवाले को

रमुआ  के बच्चे तरसेंगे

 

व्यवस्था बहुत  बीमार है

अकाल सरकारी त्योहार है

कमाने का खूब है

अवसर

बटेगी राहत की रेवड़ी

खा जाएँगे  नेता, अफसर

शहर के बड़े बंगलों में

कहकहे व्हिस्की में घुलेंगे

 

तीन साल की पुरानी धोती

चार साल की फटी साड़ी

अब एक साल और

चलेगी

पर भूख का इलाज कहाँ है

भंडार में अनाज कहाँ है

छह साल की  मुनियाँ

अपने पेट पर रख कर हाथ

मलेगी

टीवी पर चीखने वाले   

बिना मुद्दे के ही गरजेंगे

 

 

रमेशर छोड़ेगा अब गाँव

जाएगा दिल्ली, सूरत, गुड़गांव

शहर में  रखेगा पाँव 

जिंदा मांस खाने वालों से

नोचवाएगा

तब जाकर

दो जून की रोटी पाएगा ।

पीछे गाँव में बीबी, बच्चे

मनी ऑर्डर की राह  तकेंगे

पोस्ट मैन भी कमीशन लेगा

तब जाकर

चूल्हा जलेगा 

बाबा बादल की आशा में

आसमान को सतत तकेंगे

नीरज कुमार नीर / मौलिक एवं अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 28, 2015 at 2:48pm

आदरणीय नीरज जी ग्रामीण जीवन के यथार्थ को अपने बहुत ही मार्मिक ढंग से शाब्दिक किया है. प्रस्तुति अपने मर्म को अभिव्यक्त करने में और उद्देश्य में सफल है. सीधे दिल में उतरती है. इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई 

Comment by Neeraj Neer on October 27, 2015 at 10:15pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय जयनित जी ... 

Comment by Neeraj Neer on October 27, 2015 at 10:13pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय अजय जी 

Comment by जयनित कुमार मेहता on October 27, 2015 at 6:29pm
बिलकुल.. यथार्थ को प्रतिविम्बित किया है आपने यहाँ.. ढेरों बधाइयाँ आपको इन पंक्तियों के लिए..
Comment by Ajay Kumar Sharma on October 27, 2015 at 2:01pm

मार्मिक रचना है,अति सुन्दर वर्णन।बधाइयाँ।

Comment by Neeraj Neer on October 27, 2015 at 1:47pm

माननीय समर कबीर साहब आपके समर्थन से उत्साह बहुत बढ़ा .... बहुत बहुत शुक्रिया ...  

Comment by Neeraj Neer on October 27, 2015 at 1:46pm

आदरणीया प्रतिभा पांडे जी आपको कविता पसंद आई इससे लिखना सार्थक हुआ... हार्दिक आभार इस प्रोत्साहन हेतू ... 

Comment by Samar kabeer on October 26, 2015 at 11:34pm
जनाब नीरज कुमार "नीर" जी,आदाब,आपकी कविता सीधे दिल पर असर करती है,और आप अपने लेखन में कामयाब हैं,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by pratibha pande on October 26, 2015 at 7:29pm

रमेशर छोड़ेगा अब गाँव

जाएगा दिल्ली, सूरत, गुड़गांव

शहर में  रखेगा पाँव 

जिंदा मांस खाने वालों से

नोचवाएगा........     व्यवस्था बदलने के नाम पर छलावे चलते रहेंगे ,बधाई इस  सार्थक नव गीत पर आपको आदरणीय नीरज जी 

Comment by Neeraj Neer on October 26, 2015 at 6:59pm

आपको कविता पसंद आई आपका बहुत आभार अदरणीया कांता जी

कृपया ध्यान दे...

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