For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आता है जीना जिंदगी हूँ मैं

तुम सोचते हो जो नहीं हूँ मैं
जो कुछ भी मैं हूँ वो यही हूँ मैं। 

दुश्वारियाँ करती नहीं व्याकुल
आता है जीना जिंदगी हूँ मैं। 

जो सोचना है सोचिए साहब
मैं जानता हूँ कि सही हूँ मैं। 

साहिल से यारी मैं करूँ कैसे
जाना है आगे इक नदी हूँ मैं। 

अच्छा किसे लगता भला जलना
पर क्या करूँ कि रोशनी हूँ मैं । 

नीरज कुमार नीर / मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 691

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on October 30, 2015 at 12:31pm

जी आदरणीय गिरिराज सर आपका हहार्दिक आभार .... आगे भी सहायता की उम्मीद करता हूँ ... 

Comment by Neeraj Neer on October 30, 2015 at 12:29pm

आपका हार्दिक आभार महर्षि जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 29, 2015 at 8:38pm

आदरणीय नीरज भाई , आपकी गज़ल पढ़ के बहुत अच्छा लगा , बहुत अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ॥
बस मतले में सुधार आवश्यक है , नहीं और यही हम काफिया नहीं हो सकते , नहीं मे अनुस्वार बिन्दु है , इसके बदले बिना अनुस्वार के किसी शब्द की ज़रूरत है  -- जैसे

तुम जो नहीं सोचते बस वही हूँ मैं

लाख बनावट में सादगी हूँ मैं  --- या इसी तरह जो आपको सूझे , सही लगे ।

Comment by maharshi tripathi on October 29, 2015 at 7:49pm

आ. Neeraj Kumar 'Neer'ji अच्छी प्रस्तुति हुई है |

Comment by Neeraj Neer on October 29, 2015 at 7:23pm

बहुत शुक्रिया रिजवान भाई । 

Comment by Neeraj Neer on October 29, 2015 at 7:21pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया कांता राय जी

Comment by Neeraj Neer on October 29, 2015 at 7:20pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी ॥ आशा है आगे भी आपकी सलाह मिलती रहेगी

Comment by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on October 29, 2015 at 5:47pm
माशाअल्लाह बहुत अच्छी रचनाहै आपकी।
Comment by kanta roy on October 29, 2015 at 2:25pm

जो सोचना है सोचिए साहब
मैं जानता हूँ कि सही हूँ मैं। ---वाह !!! जिंदगी की कहानी जिंदगी की जुबानी। ....बएहटareen,बधाई स्वीकार करें आदरणीय नीरज जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 2:19pm

आदरणीय नीरज जी मेरे कहे को मान देने के लिए आभार 

इस ग़ज़ल में काफिया ई निर्धारित हुआ है लेकिन नहीं के ईं में बिंदी आ गई इसलिए काफिया निर्धारण त्रुटिपूर्ण हो रहा है 

बाकी अशआर में ई काफिया का बखूबी निर्वहन हुआ है. आपको मतले के पहले मिसरे में से नहीं को बदलना होगा. इस विषय पर गुणीजन और अच्छे से मार्गदर्शन कर सकते है. फ़िलहाल अपनी बात के सापेक्ष इसे उदाहरण स्वरुप यूं कहने का प्रयास किया है-

तुम सोचते हो, जी वही हूँ मैं 
देखो समूचा आदमी  हूँ  मैं। (केवल उदाहरण )

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . रोटी

दोहा पंचक. . . रोटीसूझ-बूझ ईमान सब, कहने की है बात । क्षुधित उदर के सामने , फीके सब जज्बात ।।मुफलिस…See More
1 hour ago
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा पंचक - राम नाम
"वाह  आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत ही सुन्दर और सार्थक दोहों का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
दिनेश कुमार posted a blog post

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार ( गीत )

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार( सुधार और इस्लाह की गुज़ारिश के साथ, सुधिजनों के…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

दोहा पंचक - राम नाम

तनमन कुन्दन कर रही, राम नाम की आँच।बिना राम  के  नाम  के,  कुन्दन-हीरा  काँच।१।*तपते दुख की  धूप …See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अगले आयोजन के लिए भी इसी छंद को सोचा गया है।  शुभातिशुभ"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह, पद प्रवाहमान हो गये।  जय-जय"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी संशोधित रचना भी तुकांतता के लिहाज से आपका ध्यानाकर्षण चाहता है, जिसे लेकर…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई, पदों की संख्या को लेकर आप द्वारा अगाह किया जाना उचित है। लिखना मैं भी चाह रहा था,…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए है।हार्दिक बधाई। भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ । "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service