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गीत - "बूँदें मचल रही हैं"

घन स्याम नभ में’ छाया , बूदें मचल रही हैं |
है जोर अब हवा का, ये बन सँवर रही हैं |
सूरज छुपा है’ बैठा , रूठा है रश्मियों से,
धरती मगन हुई है , चाहत उबल रही है |
.....घन स्याम नभ में’ छाया , बूदें मचल रही हैं |
 
कुछ बूँद जब पड़ी तो, खुशबू सी आ रही है |
मिल मेघ से धरा भी, आनंद पा रही है |
खिलता गया बदन ये , कितना निखार आया
धानी चुनर पहनकर , सज के खड़ी मही है |
....धरती मगन हुई है , चाहत उबल रही है |
 
अब लद गये हैं’ वो दिन , जब धूल उड़ रही थी |
जल के लिए मही जब, केवल तडप रही थी |
अब तो बरसता’ बादल, धरती नहा रही है |
दिन रात भीगी’ धरती, कितना लुभा रही है |
....धरती मगन हुई है , चाहत उबल रही है |
 
नाविक बना ये’ बालक,कितना मचल रहा है |
कागज की’ किश्ती’ लेकर, मस्ती में डोलता है |
मिल स्वाति से ये बूँदें , मोती बनी सजी हैं |
नदियाँ उधर निकलकर , सागर से’ जा मिली हैं |
 
पल ये बना मनोरम , मस्ती भी दिख रही है |

सुन सुनके’ छंद सुंदर , कुदरत भी गा रही है |

..... धरती मगन हुई है , चाहत उबल रही है |

(मौलिक अप्रकाशित )
"छाया" छाया शुक्ला

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Comment

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Comment by Chhaya Shukla on September 13, 2015 at 8:44pm

आदरणीय विजय निकोर जी आपका हार्दिक स्वागत है |
दिल से धन्यवाद !
सादर नमन !

Comment by vijay nikore on September 13, 2015 at 1:09pm

अति सुन्दर, मनोहारी गीत। बधाई।

Comment by Chhaya Shukla on September 11, 2015 at 11:09am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपका हार्दिक स्वागत है |
दिल से धन्यवाद !
सादर नमन !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2015 at 10:49am

आदरणीया छाया की , इस मनोहारी गीत के लिये आपको दिली बधाइयाँ ।

Comment by Chhaya Shukla on September 11, 2015 at 10:45am

आदरणीय शिज्जु शूकर जी आपका स्वागत है
दिल से धन्यवाद !
सादर नमन !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 10, 2015 at 8:49pm
बहुत सुंदर गीत है आदरणीया छायाजी बहुत बहुत बधाई आपको
Comment by Chhaya Shukla on September 10, 2015 at 12:12pm

आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आपका हार्दिक स्वागत है |
उत्साह बढाती प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद स्वीकारें |
सादर नमन !

Comment by Chhaya Shukla on September 10, 2015 at 12:11pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपका हार्दिक स्वागत है |
उत्साह बढाती प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद स्वीकारें |
सादर नमन !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 9, 2015 at 8:36pm
.....घन स्याम नभ में’ छाया , बूदें मचल रही है -आपकी कविता में एक  थिरकन है -सचमुच .
 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 9, 2015 at 5:24pm

आदरणीया छाया जी बहुत सुन्दर गीत हुआ है. हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर 

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