For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

टूटे सपने … (लघुकथा)...

टूटे सपने … (लघुकथा)

"राधिका ! आओ बेटी , अविनाश जाने की जल्दी कर रहा है। " माँ ने राधिका को आवाज़ लगाते हुई कहा।
''अभी आयी माँ, बस दो मिनट में आती हूँ। '' राधिका ने आईने के सामने बैठे बैठे ही जवाब दिया। आज अविनाश कितने समय के बाद विदेश से आया है। आज मैं उसे अपने मन की बात कह ही डालूंगी ,राधिका मन ही मन बुदबुदाई। जल्दी से आँखों में काजल की धार बना वो ड्राईंग रूम में आई।
''हाय अविनाश कैसे हो ? विदेश में कभी हमारी याद भी आती थी या गोरी मेमों में ग़ुम रहते थे। ''
''अरे नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं। भला तुम्हें कैसे भूल सकता हूँ। तुम्हें तो सबसे ज्यादा मिस करता था। ''अविनाश ने कहा।
''अच्छा चलो छोडो ये गीले शिकवों की बातें। ये उम्र भर यूँ ही चलती रहेंगी। ये बताओं आज इतने खुश क्यों हो ,और ये किस बात की मिठाई लाये हों। ''राधिका ने शरारत भरे लहज़े में कहा।
''इतने दिनों बाद आया हूँ। हमेश की तरह सवाल पे सवाल किये जा रही हों। ये नहीं कि चाय-वाय पूछूँ। ''अविनाश राधिका की तरफ मुखातिफ़ होकर बोला।
''सॉरी, सॉरी ''राधिका कपों में चाय डालते हुए बोली। सब को चाय देकर खुद भी चाय की प्याली लेकर सोफे पर बैठ गयी।
''हाँ तो अब बताओ , क्या सरप्राइज है ?" राधिका ने चाय पीते पीते अविनाश से पूछा।
आंटी , ये मेरी शादी का कार्ड है। आप लोग जरूर आना। और हाँ राधिका, तुम पर दुल्हन को सजाने की जिम्मेदारी है। " अविनाश आंटी के हाथ में कार्ड देते हुए बोला। '' आंटी ! अब राधिका काफी समझदार और बड़ी हो गयी है। इसके लिए भी कोई अच्छा सा लड़का देखकर इसके हाथ पीले कर दो। '' अविनाश राधिका की तरफ देखकर हँसते हुए बोला।
''हाँ बेटा, कोई अच्छा लड़का मिलते ही मैं इसके भी हाथ पीले कर दूंगी। तुम्हारी नज़र में कोई लड़का हो तो ज़रूर बताना। '' राधिका की माँ ने अविनाश से कार्ड लेते हुए कहा।
चाय पीते पीते राधिका को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके कानों में गर्म गर्म पिघला हुआ सीसा डाल दिया हो।
राधिका के हाथ से प्याली छूट गयी और छनन छनन की आवाज़ के साथ फर्श पर उसके टुकड़े टूटे सपनों की तरह इधर उधर बिखर गए।

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 456

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on September 12, 2015 at 7:55pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 10, 2015 at 10:05pm

अच्छी लघु कथा  हुई  है आ०  सुशील सरना जी बधाई आपको |

Comment by Sushil Sarna on September 10, 2015 at 1:15pm

आदरणीय सौरभ जी लघुकथा पर आपकी समीक्षात्मक प्रशंसा का हार्दिक आभार। आपकी द्वारा दी गयी हिदायतों का मैं भविष्य के सृजन में समावेश करने का प्रयत्न करूंगा। आपके मार्गदर्शन का हार्दिक हार्दिक आभार।  कृपया स्नेह बनाये रखें सर। 

Comment by Sushil Sarna on September 10, 2015 at 1:13pm

आदरणीय मिथिलेश जी लघुकथा पर आपकी स्नेहिल उपस्थिति से प्रयास को बल मिला।  आपकी मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 9, 2015 at 11:53pm

लघुकथा का भावुक कथ्य रोचक है. लेकिन ऐसे कथ्य अब अचंभित कहाँ करते हैं ? सिनेमा, कहानियों या संस्मरणों में ऐसे प्रकरण इतनी बार दुहराये-तिहराये गये हैं कि किसी के जीवन में घटित भी हों तो अब दूसरों को संवेदित नहीं करते. बहरहाल, आपकी प्रस्तुति केलिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय. 

लघुकथा शिल्प और बेहतर होता यदि इसे तनिक और कसा जाता. यही लघुकथाओं की विशेषता है. 

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 9, 2015 at 4:59pm

आदरणीया सुशील सरना सर, ये एक तरफा प्रेम वाली कथा लग रही है. ऐसे खुली आँखों से बुने सपने ऐसे ही चूर चूर होते है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
11 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
14 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
14 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
14 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
14 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
14 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service