For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मातृत्व की नई परिभाषा (लघुकथा)

“अरे संभल कर मालती अपना ख्याल रख भई..” झुझलाहट पर काबू करते हुए काम्या ने कहा.
“मुझे दिखा नहीं और पैर उलझ गया मगर तुम चिंता ना करो, मैंने तीन बच्चों को जन्म दिया है,” मालती ने अपने पेट पर हाथ लगाते हुए कहा, “और इस तेरे वाले का भी ख्याल रख लूंगी.”

“हाँ खास ध्यान रखना तू, ये हमारे लिए बहुत जरुरी है.” काम्या ने कहा.
“हाँ मैं जानती हूँ.. ये तेरा बच्चा ही है”, मालती भावुक हो उठी.

 “कुछ चाहिए हो तो बताना, मेरा नम्बर  तो है ही तेरे पास”,काम्या ने कुछ नोट मालती को पकड़ाते हुए कहा.
“ईश्वर एक रास्ता बंद करता है तो दूसरा खोल देता है तू माँ ना बन सकी और मुझे माध्यम बना दिया तेरे बच्चे को दुनिया में लाने  का, सच कहती हूँ अगर मेरे पति  दुर्घटना में अपने पैर ना खो बैठे होते तो मैं तुझसे कोई आर्थिक मदद लिए बिना तेरे बच्चे को जन्म देती..  मालती ने कहा.
“तुझे किसने कहा कि मै माँ नहीं बन सकती” काम्या ने चौंक कर कहा.
“फिर ये सरोगेसी?” मालती चौंक पड़ी.
“अरे यार ये नौ महीने का बंधन तो मै जैसे तैसे सह भी लेती. मगर मैं अपने पति के काम में भी हाथ बटाती हूँ. उनकी कम्पनी का तो एक साल में करोड़ों का नुकसान हो जायेगा.. फिर तुझे तो सिर्फ पांच लाख देकर बच्चा मिल जायेगा और बच्चा भी हमारा ही  है.. सौदा नफे का ही रहा ना..” काम्या ने आँख मार पूरा गणित समझाया.
मालती को अचानक लगा कि “पांच लाख में राजी हो उसने घाटे का सौदा तो नहीं कर लिया.”
मौलिक एवं अप्रकाशित
सीमा सिंह
कानपुर          

Views: 1014

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Seema Singh on March 9, 2016 at 11:05am
आप सभी गुणी जनों का आभार आपने कथा पर उपस्थित हो कथा कमान बढ़ा दिया।
Comment by Neeraj Neer on September 4, 2015 at 8:33pm

बहुत करारी चोट .... बहुत सुंदर रचना ... 

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 4, 2015 at 8:51am
जो खरीद सकता है वह क्या न खरीद ले , और बिकने को कोई क्या न बेच दे। फिर भी नफ़ा - नुक्सान रोज तौले।
बधाई , आदरणीय सुश्री सीमा सिंह जी , सादर।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 3, 2015 at 11:11pm

अच्छी लघुकथा के लिए दाद कुबूल करें आदरणीया सीमा जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 3, 2015 at 6:15pm

आदरणीया सीमा जी, अपने मर्म को सधे ढंग से अभिव्यक्त करती शानदार लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई.

Comment by TEJ VEER SINGH on September 3, 2015 at 2:33pm

हार्दिक बधाई  आदरणीय  सीमा सिंह जी!

Comment by pratibha pande on September 3, 2015 at 10:42am
अगर संपन्न लोग सरोगेसी के बदले एडॉप्शन को अपना लें तो देश की तस्वीर ही बदल जाय , बधाई एक अच्छा विषय उठाने के लिए सीमा जी
Comment by Shyam Narain Verma on September 3, 2015 at 10:39am
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति , बधाई आप को | सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service