For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज फिर इक सुहागन अभागन हुई

आवरण छोड़ कर तुम चले तो गये, आभरण आज उसका उतारा गया।

आज फिर इक सुहागन अभागन हुई, उसका सिन्दूर धुल के बहाया गया।।  

मयकदे से तुम्हारी लगन क्या लगी, देख ले ना गृहस्थी अगन में जली।

आचरण के असर से भले तुम गये, एक दुल्हन को बेवा बनाया गया।।  

कल्पना से परे चेतना से परे, जाने संसार में कौन से तुम गये।

हे भ्रमर किस सफर पर चले तुम गये, रंग तेरे सुमन का मिटाया गया।।  

कितने संताप आँखों के रस्ते बहे, कितने सपने सुलग कर भशम हो गये।

वेदना का असीमित खजाना सुनो, आज तेरे प्रियम को थमाया गया।।  

वो जो मासूम चेहरे तेरे वंश हैं, इस जगत में तुम्हारे जो ये अंश हैं।

उनकी आँखों में अब उम्र भर के लिये, इक उदासी का मौसम सजाया गया।

(अपनी बड़ी साली के दुःख में आँसूओं के साथ)

मौलिक अप्रकाशित 

Views: 615

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 2, 2015 at 11:28am
आदरणीय सौरभ सर; ये रचना बस दर्द की अभिव्यक्ति है; आप सभी को सादर आभार और अभिवादन
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 2, 2015 at 10:55am

संवेदना के सिवा क्या कहूं, समझ सकता हूँ, लेखनि में आंसू कितना बहाया गया!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 31, 2015 at 11:09pm

जिन परिस्थितियों में इस रचना का सर्जन हुआ है वह स्पष्ट दिखता है, भाईपंकज मिश्र वात्स्यायनजी.  रचना के माध्यम से दिल का दर्द जैसे बहा चला आ रहा है. यह मंच भी आपकी वेदनाको समझता है.  यह भी स्पष्ट हो रहा है कि आपकी रिश्तेदारी में जो कुछ हुआ है वह शराब की बोतल से निकले काल के कारण ही हुआ है. आपके संवेदनशील हृदय ने जिस दर्द को शाब्दिक किया है, उस पर शुभकामनाएँ या बधाई देना असंवेदनशीलता का जघन्य पर्याय होगा. लेकिन रचनाकर्म पर कुछ कहना साहित्यकर्म का भाग है. सर्वोपरि, संभावनापूरित रचनाओं पर सार्थक बातें कहना पाठक का एक दायित्व भी है. 

आपकी इस ग़ज़लनुमा की सभी पंक्तियाँ (मिसरे) अनायास या सायास फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन यानी फ़ाइलुन की आठ आवृतियों के वज़न में है.

आपने इसे निभाया भी है. यह एक श्लाघनीय प्रयास है. 

अन्य बातें आप अवश्य सीख जायेंगे, बशर्ते आप मंच पर उपलब्ध ग़ज़ल पर लेख पढ़ना शुरू करें. 

सधन्यवाद

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 31, 2015 at 7:51pm

आदरणीय शशि भंसाली जी सादर अभिवादन और हार्दिक आभार

Comment by shashi bansal goyal on August 31, 2015 at 7:22pm
एक संवेदनशील दुखी मन ही ऐसी रचना कर सकता है ।एक एक शब्द चुभता हुआ हृदय को भेदता हुआ है ।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 30, 2015 at 10:42pm
धन्यवाद मित्र मनोज जी
Comment by मनोज अहसास on August 30, 2015 at 10:35pm
बहुत मार्मिक भावुक मर्मस्पर्शी
मैं आपके दुःख में शरीक हु मित्र
भगवान स्थिति को नियंत्रित और संचालित रखे ऎसी प्रार्थना है
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service