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अति का अंत

परलोक में सृष्टि के रचयिता, मनुष्यों के कृत्यों से काफ़ी परेशान थे |

रचयिता ने पहले ही भू-लोक में महान हस्तियों के रूप में अवतरित होकर मनुष्यों को सही राह पर चलने की शिक्षा दे चुके थे, पर उन्हें निराशा ही हाथ लगी |

उन्होंने अपने शिल्पकार को बुला कर कहा, " मनुष्यों ने अब बहुत अति कर ली है, जल्द ही इनके अति का अंत करना होगा | "
"पर मनुष्य तो आपको सबसे प्रिय है ना, फिर उनको..? " शिल्पकार ने कहा |
"प्रिय तो मुझे वो जीव भी थे जिन्हें मनुष्य डायनासोर कहते थे....| "


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 10, 2015 at 7:38pm

"प्रिय तो मुझे वो जीव भी थे जिन्हें मनुष्य डायनासोर कहते थे....| " बहुत ही उपयुक्त !

Comment by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on August 25, 2015 at 12:06am
आद० विजय निकोरे सर एवं आद० गोपाल नारायण सर आप दोनों को हृदय से धन्यवाद जो आपने कथा को अपना बहुमूल्य समय दिया तथा सराहना भरी टिप्पणी की... सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 22, 2015 at 4:27pm

कमाल की पञ्च लाइन है . बधाई हो .

Comment by vijay nikore on August 20, 2015 at 3:48pm

प्रतीक की माध्यम सुन्दर लघुकथा । हार्दिक बधाई। 

Comment by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on August 20, 2015 at 3:37pm
आद० ममता जी शुक्रिया सराहना के लिए...
Comment by Mamta on August 20, 2015 at 10:51am
Bahut sundar v sargarbhit badhai hai aapko!
Comment by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on August 20, 2015 at 4:45am
आद० अर्चना जी, आद० मिथलेश वामनकर जी एवं आद० प्रतिभा पांडे जी आप सभी का तहेदिल से आभार एवं धन्यवाद..
Comment by pratibha pande on August 19, 2015 at 9:53pm

एक नए विचार के साथ ,रोचक कहानी ,बधाई आपको सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 19, 2015 at 9:27pm

आदरणीय नोहर सिंह जी प्रतीकात्मक रूप से कथानक गढ़ते हुए मर्म को बड़े सधे ढंग से शाब्दिक किया है. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. शीर्षक के चयन के लिए विशेष बधाई 

Comment by Archana Tripathi on August 19, 2015 at 7:45pm
प्रतिको का उपयोग करते हुए आपने बहुत ही बेहतरीन रचना लिखी हैं ।हार्दिक बधाई आपको

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