For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : हम जिन्दा भी हैं मुर्दा भी

बह्र : २२ २२ २२ २२

 

श्रोडिंगर ने सच बात कही

हम जिन्दा भी हैं मुर्दा भी

 

इक दिन मिट जाएगी धरती

क्या अमर यहाँ? क्या कालजयी?

 

उस मछली ने दुनिया रच दी

जो ख़ुद जल से बाहर निकली

 

कुछ शब्द पवित्र हुए ज्यों ही

अपवित्र हो गए शब्द कई

 

जिस दिन रोबोट हुए चेतन

बन जाएँगें हम ईश्वर भी

 

मस्तिष्क मिला बहुतों को पर

उनमें कुछ को ही रीढ़ मिली

 

मैं रब होता, दुनिया रचता

इस से अच्छी, इस से जल्दी

----------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 21, 2015 at 10:20am
आदरणीय मनोज जी, समर्थन से क्या आपको सरकार बनानी है। :)))। भाई हम दोनों अपना अपना दृष्टिकोण रखने के लिए स्वतंत्र हैं और हमें एक दूसरे की इस स्वतंत्रता की इज़्ज़त करनी चाहिए। वो कहते हैं न "let us agree to disagree".
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 20, 2015 at 10:24pm

बहुत बहुत  शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 20, 2015 at 10:24pm

बहुत बहुत शुक्रिया मनोज कुमार जी। अन्यथा लेने जैसी कोई बात नहीं है। मैं अपनी बात कह रहा हूँ तो आपको भी अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 20, 2015 at 6:27am

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , खूबसूरत ग़ज़ल कही है , नया चिंतन , नई सोच के साथ ।

कुछ शब्द पवित्र हुए ज्यों ही

अपवित्र हो गए शब्द कई    --  क्या बात है , सलाम इस सोच को । गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2015 at 7:03pm

आदरणीय जवाहर लाल जी, बात को बहुत सारे तरीकों से कहा जा सकता है, ये सच है। लेकिन मुझे कौन से तरीके से कहना है ये तो मैं ही चुनूँगा न। :)

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2015 at 7:02pm

आदरणीय मिथिलेश जी,

मुझे तो आज तक इस ब्रहांड के, इस दुनिया के होने का ही तात्पर्य समझ में नहीं आया। :)

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 19, 2015 at 12:15pm

किसी बात को किन तरीकों से कहा जा सकता है... मैं तो यही समझ पाया बाकी तो गुनीजन हैं ही... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 19, 2015 at 11:34am

आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी शेर का तात्पर्य तो मैं समझ गया मगर इसके होने का तात्पर्य नहीं समझा. कहा जाता है कि हम ब्रह्म है इस हिसाब से सभी रब ही तो है तब 

किसने रोका, दुनिया रच दो 

इस से अच्छी, इस से जल्दी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2015 at 9:59am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 19, 2015 at 9:59am

शुक्रिया आदरणीय दिनेश कुमार जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
12 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
13 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
13 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
13 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
14 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आप तो बिलासपुर जा कर वापस धमतरी आएँगे ही आएँगे. लेकिन मैं आभी विस्थापन के दौर से गुजर रहा…"
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service