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ग़ज़ल -- होगा तो क्या होगा? (मिथिलेश वामनकर)

1222 — 1222 — 1222  — 1222

 

प्रकाशित और नित् निर्मल जो मन होगा तो क्या होगा?

हमारा और उनका जब मिलन होगा तो क्या होगा?

 

उन्हें इस बात का आभास हो जाए तो अच्छा है-  

अगर ऐसे ही लोगों का दमन होगा तो क्या होगा?

 

तुम्हारे आगमन तक बस यही सोचा किया हमने 

ख़ुशी का आयतन फिर से सघन होगा तो क्या होगा?

 

अगर साहित्य की दुनिया में केवल नाम पाने को

सदा यूं ही नक़ल वाला सृजन होगा तो क्या होगा?

 

मुझे मंदिर की घंटी ने  सवेरे प्रश्न पूछा है -

कि मस्जिद में जो मीरा का भजन होगा तो क्या होगा?

 

बड़ी कोमल विधा है ये, सरस सौन्दर्य है, सोचो 

ग़ज़ल में व्यर्थ शब्दों का वमन होगा तो क्या होगा?

 

प्रलय की दोपहर में ये धरा किस रंग की होगी?

कभी सोचो, अगर पीला गगन होगा तो क्या होगा?

 

नगर जिसमें सभी पाषण मन के लोग रहते हैं,

मुझे मालूम है मेरा रुदन होगा तो क्या होगा.

 

चले आये हो अपना सच लिए तुम होम करने को

तनिक ये सावधानी भी,  हवन होगा तो क्या होगा?

 

अहम् अपना भुलाकर दो घड़ी बस ध्यान देना तुम

किसी को मान देकर जब नमन होगा तो क्या होगा?

 

बड़े बदलाव की बातें कहूं पर डर ये लगता है

चमन होगा तो क्या होगा, वतन होगा तो क्या होगा?

 

कभी ‘मिथिलेश’ कर लेते सुरक्षित संस्कारों को

स्वयम् से पूछ लो इनका पतन होगा तो क्या होगा?

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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Comment

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Comment by vijay nikore on August 18, 2015 at 1:29pm

बहुत ही खूबसूरत गज़ल कही है आपने मिथिलेश जी। हार्दिक बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2015 at 10:29am

कभी 'मिथिलेश' कर लेते सुरक्षित संस्कारों को
स्वयम् से पूछ लो इनका पतन होगा तो क्या होगा
बहुत ही लाजवाब गगजल हुई है आ0 भाई मिथिलेश जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 17, 2015 at 4:57pm

आदरणीय मनोज भाई जी, ग़ज़ल में शेर दर शेर, मर्म को छूते हुए सार्थक प्रतिक्रिया से आनंदित हूँ. ग़ज़ल के प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 17, 2015 at 4:55pm

आदरणीय हर्ष जी, रचना ने आपको प्रभावित किया, लिखना सार्थक हो गया, ग़ज़ल के प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.

Comment by मनोज अहसास on August 17, 2015 at 4:21pm
नमस्कार सर
एक अत्यंत सोच का भावात्मक गान जो इस ग़ज़ल में हुआ है
बहुत सारे सन्देश देता है
इसमें प्रतीक्षा भी
कौतुहल भी है
चिंता भी
मार्गदर्शन भी
भय भी
नव कल्पना भी और
पहेली भी
साहब आपने बहुत इरादतन सब समेट कर पिरो दिया है खूबसूरत और सजीली बहर में
हमारे जैसे सीखने वालों के लिए ये ऐसी ग़ज़लें एक कक्षा जैसी है
बहुत सम्मान से आपको नमन करता हु
ये भी आशा करता हूँ इस प्रश्न का उत्तर भी आपसे ही मिलेगा क़ि
क्या होगा
बहुत आभार
सादर
Comment by Harash Mahajan on August 17, 2015 at 3:26pm
आ0 मिथिलेश वामनकर जी हर बार की तरह आपकी ये रचना भी दिल को छूती हुई निकल गई । ढेरों दाद । साभार ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 17, 2015 at 3:15pm

आदरणीय समर कबीर जी, आप जैसे उस्ताद ग़ज़लगो से तारीफ़ पाना मेरे लिए मायने रखता है. ग़ज़ल के प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 17, 2015 at 3:14pm

आदरणीय दिनेश भाई जी, आपकी आत्मीय प्रशंसा पाकर दिल खुश हो गया, ग़ज़ल के प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 17, 2015 at 3:14pm

आदरणीय नीरज मिश्र जी, बहुत दिनों बाद पुनः आपको मंच पर पाकर प्रसन्नता हुई. ग़ज़ल के प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 17, 2015 at 3:11pm

आदरणीय रवि जी, ग़ज़ल की सराहना और विस्तृत सार्थक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. अभिभूत हूँ आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया पाकर. यह प्रयोग आपको अच्छा लगा, पसंद आया, जानकार आश्वस्त हुआ. आप जैसे संजीदा रचनाकार से दाद पाना मेरे लिए मायने रखता है. आपने मतले पर प्रश्नवाचक बिंदु को चिन्हित किया है. इसे पुनः निवेदित कर रहा हूँ-

प्रकाशित और नित् निर्मल जो मन होगा तो क्या होगा?
मुझे मालूम है अपना मिलन होगा तो क्या होगा?

सादर 

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