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.जशने आज़ादी है आज--(फ़िलबदीह ग़ज़ल.'राज')

२१२२  २१२२  २१२२   २१२१ 

दीप राहों में जलाओ जशने आज़ादी है आज,

 ध्वज वतन का लह्लहाओ जशने आज़ादी है आज,

 

भूल कर शिकवे गिले इक दूसरे का हाथ थाम

एक सुर में सुर मिलाओ जशने आज़ादी है आज,

 

रंग दी धरती जिन्होंने जान देकर खून से

,खूब उनके गीत गाओ ,जशने आज़ादी है आज,

 

जिस वतन के वास्ते तुम जाँ लुटाते आये हो,

दूरियाँ दिल से मिटाओ जशने आज़ादी है आज,

 

सरफरोशों की सभी कुर्बानियों का वास्ता,

फिर वही ज़ज्बे दिखाओ जशने आज़ादी है आज,

 

चढ़ गया हर शख्स पर इस वक़्त आज़ादी का रंग

, एकता की लौ जलाओ जशने आज़ादी है आज,

 

तुम चमन के बागवाँ हो तुम वतन के बादशाह,

सरहदों को जगमगाओ जशने आज़ादी है आज,

 

बैठ कर ऊँचे भवन में जश्न में डूबे बहुत,

 खाना भूखों को खिलाओ जशने आज़ादी है आज,

--मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 18, 2015 at 11:27am

मिथिलेश भैया ,बहुत -बहुत शुक्रिया आपको ग़ज़ल पसंद आई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 18, 2015 at 11:26am

आ० रवि शुक्ला  जी,बहुत- बहुत आभार आपका . 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2015 at 10:35am

भूल कर शिकवे गिले इक दूसरे का हाथ थाम
एक सुर में सुर मिलाओ जशने आज़ादी है आजए
 आ0 राजेश दी, राष्टीय भवना से ओतप्रोत बहुत सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।
    
    

Comment by Samar kabeer on August 17, 2015 at 3:01pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,बहुत शानदार फ़िलबदीह ग़ज़ल कही है आपने जश्न-ए-आज़ादी पर,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 17, 2015 at 12:42pm

आदरणीया राजेश दीदी, जश्न-ए-आज़ादी पर बढ़िया ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by Ravi Shukla on August 17, 2015 at 11:50am

 आदरणीया राजेश जी

सुन्‍दर और प्रसंगानुकूल ग़ज़ल पर ह‍ार्दिक शुभकामनाएं स्‍वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

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