“आप सरकारी नौकरी के साथ समाज सेवा कैसे कर लेते है?”
“जब नौकरी से फ्री होता हूँ तो खाली समय का उपयोग कर लेता हूँ.”
“आपको झुग्गी-बस्ती में शिक्षा के प्रसार की प्रेरणा कहाँ से मिली?”
“हा हा हा... प्रेरणा व्रेरणा कुछ नहीं भाई.... स्लम एरिया के पास वाले सिग्नल पर बच्चों को सामान बेचते और भीख मांगते देखा, तो स्लम में चला गया... लोगों से बात की तो लगा कुछ करना होगा और असली काम तो वालेंटियर ही कर रहे है.”
“आपको सब पर्यावरण-मित्र कहते है क्योकिं आप इतने बड़े ओहदे पर है फिर भी पैदल ऑफिस जाते है. क्या ये सही है?”
“हा हा हा .... पर्यावरण मित्र तो हूँ लेकिन... भई मेरा घर ऑफिस के पास ही है इसलिए पैदल ही चल देता हूँ.”
“सभी जानना चाहते है कि आपके इस असाधारण व्यक्तित्व का क्या राज़ है?”
“भाई... बहुत ही साधारण आदमी हूँ ..... पता नहीं आपको क्या असाधारण लगा?.....”
इसके बाद वह एक भी प्रश्न नहीं कर सका.
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(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर
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Comment
आदरणीया डॉ नीरज शर्मा जी, गद्य की इस विशिष्ट विधा का बिलकुल नया अभ्यासी हूँ. अब तक पढ़ी लघुकथाओं और मंच पर प्रस्तुत लघुकथाओं के आधार पर इस विधा के विभिन्न आयामों पर अभ्यास कर रहा हूँ. आपको मेरा प्रयास पसंद आया. जानकार आश्वस्त हुआ. इस प्रयास के मुखर अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार.
बहुत सार्थक लघुकथा है आपकी आ. मिथिलेश वामनकर जी। संवादों के माध्यम से असाधारण रचना रच दी आपने। सुन्दर लघुकथा के लिए बधाई।
आदरणीय हर्ष जी , लघुकथा की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, लघुकथा के मुखर अनुमोदन से आश्वस्त हुआ. इस प्रयास की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
आदरणीय तेजवीर सिंह जी , लघुकथा के अनुमोदन से संतोष हुआ. इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
आदरणीय विनय जी , लघुकथा के मुखर अनुमोदन से आश्वस्त हुआ. इस प्रयास की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
आदरणीय सुशील सरना सर, लघुकथा के मुखर अनुमोदन और इस प्रयास की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
अति उत्तम मिथिलेश वामनकर जी !! वहुत बहुत बधाई !!
आदरणीय मिथिलेश जी, इस असाधारण लघुकथा के लिए मेरी ओर से साधरण सी शुभ कामना और बधाई!बहुत गूढ बात कह दी आपने इस लघुकथा के माध्यम से!अति उत्तम!पुनः बधाई!
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