For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बस तुम नहीं आती

खोल रखे है मैंने

खिड़कियाँ और सभी दरवाजे

भीतर आते हैं

धूप , चाँदनी ,

निशांत समीर ,

दोपहर के गरम थपेड़े ,

पूस की  शीत लहर ,

बरखा बूंदे

तमस, प्रकाश

पुष्प सुवास, उमसाती गँधाती अपराह्न की हवा

और सभी कुछ

अपनी मर्जी से

और अक्सर उतर आता है

खाली आकाश भी

बस तुम नहीं आती

कितने बरस बीत गए

पर तुम नहीं आती

खोल रखे होंगे

तुमने भी शायद

खिड़कियाँ और दरवाजे

..... नीरज कुमार नीर

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 660

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on August 4, 2015 at 4:17pm

आदरणीय  शरदिंदु मुख़र्जी साहब आपकी इस प्रेरणास्पद प्रतिक्रिया हेतू आपका आभार ... 

Comment by Neeraj Neer on August 4, 2015 at 4:15pm

आदरणीय  Mohan Sethi 'इंतज़ार' आपका दिल से शुक्रगुजार हूँ .... 

Comment by Neeraj Neer on August 4, 2015 at 4:15pm

आपका हार्दिक भर आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on August 4, 2015 at 1:21pm
आदरणीय सौरभ जी के "कौतुक" का सूत्र थामकर मैं कहना चाहूंगा कि यदि यह मेरी रचना होती तो अंतिम पंक्तियों का कुछ इस प्रकार होना सम्भव था:
'तुम अपनी खिड़की और दरवाजों को बंद रखो
जब तक चाहो
मैं आवारा पवन बनकर
दस्तक देता रहूंगा'

आपकी रचना ने मुझे "कौतुक" में शामिल होने के लिए प्रेरित किया यह रचना की सफलता का द्योतक है आदरणीय नीरज नीर जी. साधुवाद. सादर.
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 4, 2015 at 8:17am

आदरणीय नीरज नीर जी इस भावपूर्ण रचना के लिये बधाई ...बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति 

Comment by pratibha pande on August 3, 2015 at 8:27pm
बहुत ख़ूबसूरत रचना बधाई आपको आ० नीरज जी
Comment by Neeraj Neer on August 2, 2015 at 8:25pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी कविता को समर्थन देने हेतू .... 

आपका आभार इस सलाह हेतू ..... 

मैं ऐसा ही करने की कोशिश करूंगा ... 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2015 at 8:10pm

आदरणीय नीरज नीर जी, अभी-अभी आपकी एक बहुत ही कोमल कविता पढ़ी है, गुड़हुल के फूल और लड़कियों को लेकर. अभी प्रस्तुत कविता को देख रहा हूँ. वियोग-विह्वलता को अच्छे शब्द मिले हैं. बधाई स्वीकर करें.

आखिरी कुछ पंक्तियों को कुछ यों करना उचित हो सकता है क्या ? --

खोल रखे हैं उधर
क्या तुमने भी
खिड़कियाँ और दरवाजे ? 

ऐसे प्रश्न का मतलब क्यों है, इसे आप समझेंगे ही. इस कविता को पढ़ कर बन गयी भावदशा से उपजा यह कौतुक मात्र है. अन्यथा न लीजियेगा.

शुभेच्छाएँ

Comment by Neeraj Neer on August 2, 2015 at 7:56pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश जी 

Comment by Neeraj Neer on August 2, 2015 at 7:56pm

हार्दिक आभार आपका आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब ॥ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।"
43 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
50 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया। भाई-चारा का…"
50 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
56 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी, ऐसा करना मुनासिब होगा। "
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकार करें"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ इस्लाह भी ख़ूब हुई आ अमित जी की"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी आ रिचा अच्छी ग़ज़ल हुई है इस्लाह के साथ अच्छा सुधार किया आपने"
1 hour ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय जी सादर नमस्कार। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु हार्दिक बधाई आपको ।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Sanjay Shukla जी, बहुत आभार आपका। ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रिया।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Euphonic Amit जी, बहुत आभार आपका। ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रिया।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ Dinesh Kumar जी, अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई है। "
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service