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बहुत सोचा तो लगा
सच ही तो कहते हैं
वे तो भर्ती होते हैं मरने के लिए
अवगत होते हैं
अपने कार्य के निहित खतरों से
पर एक बात समझ नहीं आयी
जब सामने से चलती हैं गोलियां
उनके पास भी तो होता है
भाग खड़े होने का विकल्प
पर वे भागते क्यों नहीं
देते हैं गोलियों का जवाब
पीघला देते हैं लोहे को
अपने सीने में कैद करके
बारूद को कर देते हैं बर्फ
वे धोखा नहीं दे पाते
अपनी मातृभूमि को
राजनेताओं की तरह
मेरी समझ में कुछ कमी है शायद ...
...... नीरज कुमार नीर ...

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Neeraj Neer on July 21, 2015 at 9:56pm

आदरणीय समर कबीर साहब ... आपका आभार ... 

Comment by Neeraj Neer on July 21, 2015 at 9:55pm

आ॰ सोमेश कुमार जी आभार। 

Comment by Neeraj Neer on July 21, 2015 at 9:55pm

आपका हार्दिक आभार प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी ॥ 

Comment by Samar kabeer on July 20, 2015 at 2:44pm
जनाब नीरज कुमार "नीर" जी ,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें
Comment by somesh kumar on July 19, 2015 at 6:24pm

umda

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 18, 2015 at 11:23pm

वे मर्द होते हैं . सादर बधाई 

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