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सुनो-सुनाओ, दर्द घटाओ अपनी अपनी प्रेम कहानी

है सजी महफ़िल यारों 

फिर से जख्मों को उठाओ 

याद फिर कर लो उसे 

जिससे मोहब्बत की थी यारों

फिर वही कुछ हँसते गाते 

रुठते और फिर मनाते 

अश्क़ जब आँखों में आये 

गीत  बन जब दर्द जाये

जख्म तुम सबको दिखाओ

फिर वही अपनी पुरानी

सुनो-सुनाओ, दर्द घटाओ

अपनी अपनी प्रेम कहानी |

उसको भी बतलाओ यारों

वो कहाँ और हम कहाँ हैं 

हमने तो जख्मों को अपने 

जीने का जरिया बनाया

गिर के खुद संभले जहाँ पर

ऐसा एक दुनिया बनाया 

हमने त्यागे पुष्प हृदय के

शूल को अपना बनाया

त्यागें वांछित प्रेम स्वप्न और

कंठ को अपना बनाया

रच के पीर ग्रन्थ अपनी

पूरी दुनिया को सुनाओ

अपनी -अपनी  मुहजुबानी 

सुनो-सुनाओ, दर्द घटाओ

अपनी अपनी प्रेम कहानी |

दिन भी कट जातें हैं अब तो 

अब नही रातों को जगना

अपने -अपने गुण दोष पर 

अब नही लड़ना झगड़ना

है नही इस इश्क़ में कुछ

दिल मेरा अब मानता है 

इश्क़ है मुस्कान मन की 

बस यही अब जानता है 

इश्क़ है अपने वतन से 

इश्क़ है अपने चमन से

इश्क़ है अपने कुटुम्ब से

आज ये सबको बताओ

जिस के दिल बसती हैं रानी 

सुनो-सुनाओ, दर्द घटाओ

अपनी अपनी प्रेम कहानी |

****************************

"मौलिक व अप्रकाशित "

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Comment

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Comment by maharshi tripathi on July 26, 2015 at 6:17pm

आ.डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ,बस इसी तरह आशीष बनाये रखें |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 25, 2015 at 9:42pm

महर्षि जी आप सध रहे  हैं  . मुझेअच्छा लगा .

Comment by maharshi tripathi on July 23, 2015 at 11:31pm

आ.Saurabh Pandey सर ,आपकी सुझाव का अवश्य पालन करूँगा |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 23, 2015 at 10:53pm

आपकी शायद कोई पहली पद्य प्रस्तुति देख  रह हूँ क्या, भाई ? दीर्घकालीन सतत प्रयास बना रहे.

शुभेच्छाएँ.

पुनश्च : आपसे हमने अध्ययन के क्रम में विभिन्न रचनाओं को पढ़ने का निवेदन किया था. इस प्रक्रिया में बन सके तो आदरणीय मिथिलेशभाईजी का सहयोग लें.

शुभ-शुभ

Comment by maharshi tripathi on July 23, 2015 at 10:20pm

आ. गुणीजन ,रचना पसंद करने हेतु आप सभी का आभार ,आ. गिरिराज सर क्या गीत कोई विधा नही है ?

मैंने तो गीत लिखा है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 23, 2015 at 4:40pm

बढ़िया भाव हैं


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 23, 2015 at 1:20pm

इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आदरणीय महर्षि भाई जी  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 23, 2015 at 12:52pm

आदरणीय महर्षि भाई रचना के भाव अच्छे लगे । हार्दिक बधाई । इसे किस  विधा का नाम दें , समझ नही पाया ।

Comment by Er Anand Sagar Pandey on July 23, 2015 at 9:36am
बहुत ही उम्दा और मदमस्त पंक्तियां l
Comment by maharshi tripathi on July 22, 2015 at 8:03pm

शुक्रिया आ. pratibha pande जी |

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