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गीतिका(मनन कु सिंह)

गीतिका(मात्रा भार-20 मात्राएँ)
हम यादों की बाती जलाते रहे।
तुम यादों के दीपक बुझाते रहे।
हम यादों के सपने सजाते रहे,
तुम सपनों की अर्थी उठाते रहे।
हम सपनों की मूरत बनाते रहे,
तुम मूरत की सूरत छिपाते रहे।
हम सपनों की सूरत दिखाते रहे,
तुम सूरत से अपनी लजाते रहे।
हम बातें वो लिखकर बताते रहे,
तुम बातें भी अपनी मिटाते रहे।
हम नज़रों में तुमको बिठाते रहे,
तुम नज़रों से दूरी बनाते रहे।
तुम बरसे भी कहाँ,बस छाते रहे,
तुम सूखी-सी रेती उड़ाते रहे।
हम यादों के आँसू सुखाते रहे,
तुम सपनेभीअब से भिगाते रहे।
'मौलिक व अप्रकाशित'@ मनन

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Comment

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Comment by Manan Kumar singh on July 25, 2015 at 7:13pm
मुखड़ा गीतिका होती,थोडा संशोधन करना रह गया है।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 21, 2015 at 12:04pm

भावपूर्ण रचना प्रस्तुति के लिए बधाई आपको पर ये गीतिका तो नहीं है श्री मनन सिंह जी | इसे गीतिका नाम क्यों दिया है, कृपया बताए | सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 21, 2015 at 11:29am

आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 21, 2015 at 11:05am

आ. मनन भाई , दिधा से परिचित तो नही हूँ , पर प्रस्तुति अच्छी लगी , बधाई आपको ।

Comment by Manan Kumar singh on July 20, 2015 at 7:42pm
शुक्रिया समर भाई
Comment by Samar kabeer on July 20, 2015 at 2:34pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

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