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नदी के बीच वाला पाया (लघुकथा)

एक नदी पर एक पुल था , जिसमे सात पाये थे। एक बार सबसे बीच वाले पाए ने सबसे किनारे वाले पाए से कहा “जानते हो यह पुल मेरी वजह से ही है। नदी की जलधारा का सबसे ज्यादा प्रवाह मैं ही झेलता हूँ। मैं हमेशा पानी में डूबा रहता हूँ, तुमलोगों का क्या किनारे खड़े रहते हो, बरसात में कभी कभी नदी की जलधारा तुम तक पहुँचती है वरना सालो भर ऐसे ही खड़े रहते हो, तुम्हारी उपयोगिता ही क्या है। मेरे कारण ही लाखों लोग इस पुल का प्रयोग कर नदी के आर पार जा पाते हैं । “
किनारे वाले पाये ने कोई जवाब नहीं दिया। कुछ दिनो बाद किनारे वाले दोनों पाये ढह गए। अब उस पुल का सड़क से संपर्क टूट गया। उस पुल का प्रयोग बंद हो गया। उसी पुल के बगल में एक नया पुल बन गया। लोग उसी पुल से आने जाने लगे । बीच वाला पाया चुपचाप पानी में खड़ा नए बने पुल और उस पर आते जाते लोगों को देखता रहता।
नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Neeraj Neer on July 21, 2015 at 9:57pm

आदरणीय सौरभ जी इस प्रयास को सराहने एवं उत्साहवर्धन हेतू आपका आभार ॥ 

Comment by Neeraj Neer on July 21, 2015 at 9:57pm

आदरणीय श्री सुनील जी आपका आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 16, 2015 at 6:40pm

उचित परिणाम के साथ लघुकथा का अंत होता है. आपके प्रयास केलिए हार्दिक धन्यवाद.

शुभेच्छाएँ.

Comment by shree suneel on July 8, 2015 at 6:29pm
कुछ भी महत्वहीन नहीं होता. समय ये सिद्ध करता है.
बधाई आपको इस प्रस्तुति पर आदरणीय. सादर.
Comment by Neeraj Neer on July 8, 2015 at 11:15am

आपकी बधाई अनमोल है आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब .... आपका आभार. 

Comment by Neeraj Neer on July 8, 2015 at 11:14am

आदरणीया कांता रॉय जी रचना को समर्थन देने एवं उत्साह बढाए के लिए आपका बहुत आभार...  

Comment by Neeraj Neer on July 8, 2015 at 11:13am

आभार आदरणीय विनय जी ... आपको रचना पसंद आई इससे उत्साहवर्धन हुआ है ..

Comment by Neeraj Neer on July 8, 2015 at 11:12am

आपका आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी.... आपकी सलाह सर आँखों पर.... 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 8, 2015 at 9:37am

नीर जी

इस लघु कथा केलिए मेरी और सा आपको बधाई , सुन्दर .

Comment by kanta roy on July 7, 2015 at 9:00am
बहुत ही गंभीर चिंतन ...... उपयोगिता किसकी कितनी ... एक आस्तित्व का निर्माण के पीछे बहुत सारे पाये होते है । कुछ दूर से सपोर्ट करते है तो कुछ निकतम का आभास देते हुए , लेकिन बराबरी का भागीदारी सबकी ही रहती है । किसी एक की उदासीनता डूबो सकती है ..... ध्वस्त कर सकती है पूरे आस्तित्व को । इसलिए सजग रहो उन देखे अनदेखे हुए सभी पायो के प्रति , ना करो तिरस्कार , नतमस्तक रहो सबके लिए क्योंकि एक आस्तित्व के पीछे सभी पायो की सहभागिता बराबर है । बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय नीरज कुमार " नीर " जी

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