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त़रह़ी ग़ज़ल :मुझको वो मेरे नाम /श्री सुनील

221 2121 1221 212

कुछ दिन ठहर के आज ये तूफ़ान तो गया
अच्छा ! बना के अौर हीं इंसान तो गया.

था बेअदब मगर वो हुनरबाज़ था, मेरी
पत्थर सी ज़िंदगी में पिरो जा़न तो गया.

पीले से पड़ गये हैं मेरे पास जिसके ख़त
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया.

वर्षों के रब्त में यही बाकी हीं था अभी
सो आज हीं सही,मैं उसे जान तो गया.

मिलता रहा मैं जिससे लिपट कर खुशी खुशी
होने पे मेरे उसका चलो ध्यान तो गया.

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by kanta roy on July 25, 2015 at 9:34am
पीले से पड़ गये हैं मेरे पास जिसके ख़त
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया......वाह !वाह ! क्या खूब बनी है बात इस शेर में ....इस उम्दा गजल के लिए मुबारकबाद कबूल किजिये आदरणीय श्री सुनील जी
Comment by shree suneel on July 24, 2015 at 10:31am
धन्यवाद आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी. सादर
Comment by shree suneel on July 24, 2015 at 10:30am
धन्यवाद आदरणीय राहुल दांगी जी. सादर
Comment by shree suneel on July 24, 2015 at 10:29am
ग़ज़ल की सराहना के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय शिज्जु सर. सादर
Comment by shree suneel on July 24, 2015 at 10:05am
ग़ज़ल पे आने और सराहना के लिए पुनः धन्यवाद आदरणीय मिथलेश वामनकर सर जी. सादर
Comment by shree suneel on July 24, 2015 at 10:02am
ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय गिरिराज सर जी. सादर
Comment by maharshi tripathi on July 23, 2015 at 10:52pm

वाह ! बढ़िया गजल हुई है आ. shree suneel  जी |

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 23, 2015 at 5:13pm
अच्छी गजल हुई है आदरणीय

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 23, 2015 at 4:37pm

वाह बहुत बढ़िया बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 23, 2015 at 1:25pm

आदरणीय सुनील भाई जी बढ़िया ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

इस शेर पर दिल से दाद -

पीले से पड़ गये हैं मेरे पास जिसके ख़त
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया.

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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