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पेडों पर इल्जाम लगा वो ख़ुद की खातिर जीता है
सोच रहा हूँ मैं सागर क्या अपना पानी पीता है ?
झूठा- सच्चा , सही ग़लत ये सब बे पर की बातें हैं
दिखे फाइदा, सच को मोड़ो जिसको जहाँ सुभीता है
सभी उँगलियाँ अलग हो गईं अहम बीच में आने से
चुल्लू में कुछ रुका नहीं , जो रीता था, वो रीता है
शब्द कोश बस रट लेने से भाव नहीं पैदा होता
व्यर्थ हाथ में रख लेना क़ुरआन बाइबिल गीता है
हर इच्छायें अजगर जैसी लिपटी रहती हैं मन से
और समय का पंजा झपटे जैसे कोई चीता है
हर आदम में कृष्ण- कंस है , राम जहाँ है रावण भी
हर औरत में सुरसा भी है, और सभी में सीता है
जोंक नुमा किरदार कहूँ या अमर बेल इसको बोलूँ
जो पर जीवी जिससे लिपटा उसका खूँ ही पीता है
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गिरिराज भंडारी
Comment
वाह आदरणीय गिरिराज जी, दाद कुबूल करें
ग़जब .....बहुत उम्दा ग़ज़ल ....दाद कबूल करें जनाब .....सादर
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