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ग़ज़ल :मीआ़दे उल्फ़त देखिये

2212 2212 2212


मीआ़दे उल्फ़त देखिये पूरी हुई
इतनी सी तब तो बात अब उतनी हुई.

क्या इश्क़ में दुनिया से तू भी तंग है
क्या तंज़ तुझ पे भी मेरे जैसी हुई.

दौरे गुज़श्ता ने असर कुछ यूँ किया
टूटा हुआ मैं,तू भी है टूटी हुई.

पाया है जो मेयार तेरे इश्क़ ने
लो! ज़िन्दगी क्या! रूह भी तेरी हुई.

ऐ चाँद! मुझको खींच ले ख़ुद की तरफ़
देखूं कि छत पे होगी वो आई हुई.

उनसा खिला गमले में इक तो गुल, अरे!
ख़ुशबूू भी उसमें हू ब हू उनसी हुई.

श्री सुनील

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by shree suneel on July 4, 2015 at 1:21am
सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया महिमा श्री जी.
Comment by shree suneel on July 4, 2015 at 1:19am
आदरणीय भाई कृष्ण मिश्रा जी, ग़ज़ल पे आने और शे'र दर शे'र चर्चा के लिये धन्यवाद. ग़ज़ल पसंद करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया. जिन बिन्दुओं पे आपने ध्यान दिलाया है उसपे गौ़र करता हूँ साथ हीं, यदि अन्य गुणीजन इस पोस्ट पर आते हैं तो उनकी भी राय जानना चाहूँगा. सादर.
Comment by shree suneel on July 4, 2015 at 1:01am
शुक्रिया आदरणीय नरेंद्र सिंह जी.
Comment by shree suneel on July 4, 2015 at 12:59am
शुक्रिया... शुक्रिया.. आदरणीय मिथलेश वामनकर सर.
Comment by MAHIMA SHREE on July 3, 2015 at 9:10pm

उम्दा प्रस्तुति बधाई आपको

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 3, 2015 at 9:10pm


मीआ़दे उल्फ़त देखिये पूरी हुई

इतनी सी तब तो बात अब उतनी हुई>>>>> इतनी सी तब थी बात अब उतनी हुई...करना क्या बेहतर रहेगा?

क्या इश्क़ में दुनिया से तू भी तंग है
क्या तंज़ तुझ पे भी मेरी जैसी हुई.      बहुत उम्दा!       मेरी को मेरे कर लीजिये शायद टंकण त्रुटी है!

दौरे गुज़श्ता दोनो पे गुज़रा यूँ कुछ
टूटा हुआ मैं,तू भी है टूटी हुई..                  बहुत सुन्दर! क्या कहने!.....दोनों पे मात्रा गिराने पर मुझे शंका है!

पाया है जो मेयार तेरे इश्क़ ने
लो! ज़िन्दगी क्या! रूह भी तेरी हुई.             बेइंतहा खुबसूरत शेर! हासिले गज़ल! 

ऐ चाँद! मुझको खींच ले ख़ुद की तरफ़
देखूं कि छत पे होगी वो आई हुई.            अहह्ह्ह्हा.....वाह सरजी दिल जीत लिया.. सलाम!

उनसा खिला गमले में इक गुल, अरे!
ख़ुशबूू भी उसमें हू ब हू उनसी हुई.               क्या कहने! नये अंदाज का शेर!

बहुत बेहतरीन गज़ल हुयी है आ० shree suneel सर! तहेद्ल से दाद प्रेषित है!

Comment by narendrasinh chauhan on July 3, 2015 at 3:57pm

बहुत खूब सुन्दर , शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 3, 2015 at 1:46pm

आदरणीय सुनील जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

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