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भूख(लघु कथा, मनन कु॰ सिंह)

भूख(लघु कथा)
आखिरी बस जा चुकी।सन्नाटा पसर चला।उसे चूल्हे की आग बुझती-सी लगी,पर यूँ ही बैठी रही।अचानक उसका ध्यान भंग हुआ,
--बस छूट गयी क्या?
दूकान बंद करते पानवाले ने पूछा।
-नहीं,बस यूँ ही---उसने मुड़कर पीछे देखा।पानवाला उसे अंदर तक घूरता-सा लगा।
--अब कोई नहीं आयेगा,चल न मेरे यहाँ आज।
--नहीं,घर में बच्चे भूखे होंगे,और फिर तेरी घरवाली.........?
-मैके चली गयी है।बगल के बटोही के साथ धर लिया था उसे एक दिन।
फिर नजरें मिलीं।लगा रोशनी फैलने लगी, अब चूल्हे जल जायेंगे।उसने अपना आँचल सहेजा।दोनों अँधेरे में गुम हो गये।
'मौलिक व अप्रकाशित'

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Comment by Hari Prakash Dubey on June 24, 2015 at 5:33pm

बहुत बढ़िया  , बधाई आपको   इस   रचना  पर  आदरणीय मनन कु सिंह जी !

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on June 24, 2015 at 12:47pm

 katu satya - bhookh jo na karaye so thoda

Comment by विनय कुमार on June 23, 2015 at 8:11pm

बहुत सुन्दर और सारगर्भित लघुकथा , बधाई आदरणीय मनन कु सिंह जी.

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on June 23, 2015 at 5:18pm
बहुत सुन्दर और शीर्षक को सार्थक करती बेहतरीन लघुकथा।
सुन्दर शैली और बेहतर प्रस्तुति के लिये सादर बधाई आद: मनन भाई जी।

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