For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मरासिम.............."जान" गोरखपुरी

२२१  २१२१     १२२१   २१२

 

ये हैं मरासिम उसकी मेरी ही निगाह के

तामीरे-कायनात है जिसका ग़वाह के

..

सजदा करूँ मैं दर पे तेरी गाह गाह के

पाया खुदा को मैंने तो तुमको ही चाह के

 ..

हाँ इस फ़कीरी में भी है रुतबा-ए-शाह के

यारब मै तो हूँ साए में तेरी निगाह के

 ..

जो वो फ़रिश्ता गुजरे तो पा खुद-ब-खुद लें चूम

बिखरे पडे हैं फूल से हम उसकी राह के

 ..

छूटा चुराके दिलको वबाले-जहाँ से मैं

ऐ “जान” हम हुए हैं मुरीद इस गुनाह के

********************************************

मौलिक व् अप्रकाशित (c) "जान" गोरखपुरी

*******************************************

Views: 2744

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 28, 2015 at 3:47am

आदरणीय कृष्ण भाई गुनीजनों के मार्गदर्शन अनुसार प्रयासरत रहे , हार्दिक शुभकामनायें 

Comment by Hari Prakash Dubey on June 24, 2015 at 6:12pm
Comment by मनोज अहसास on June 24, 2015 at 3:29pm
बहुत बढ़िया चर्चा हुई है
आप सभी से हमे सीखने को मिल रहा है
बहुत आभार और शुभकामनायें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 24, 2015 at 12:05pm

आ. कृषणा भाई , आपने माफी के लायक कोई ग़लती नहीं की है ,  भूल जाइये ।  याद रखिये बस ये - कि

***************************************************************************************************

1- इंटरनेट मे संकलित जानकारियाँ  आप -हम जैसे ही लोगों का  संकालन  किया है , बहुत सी बातें विश्वास के योग्य नहीं है , अतः आप भी एक हिन्दी और एक उर्दू  शब्द कोश अवश्य पास रखें ।

2-  अभ्यास के बाद सायकल लोग हाथ छोड़ के भी चला लेते हैं रिस्क के बावजूद , पर सायकल सीखने वाले को  कैसे ये कह दें कि आप भी हाथ छोड़ के सायकल सीखिये , सीखना - सिखाना दोनो ज़िम्मेदारी का काम है , हमेशा याद रखियेगा

3- कोई भी व्यक्ति पूरा जानकार नहीं होता , वो अपने स्तर तक की बात का जवाब दे सकता है , सिखा सकता है

4-  जैसे सीखने वाले अलग अलग  सोच  लिये होते हैं वैसे ही सभी सिखाने वाले एक ही सोच नही रख सकते

5- हम साहित्य से जुड़े व्यक्ति हैं , अतः भाषा  की मर्यादा होनी ही चाहिये ।

6-  आज ही आ. वीनस भाई जी ने मेरी एक गजल ( जिसकी शायद  औरों की तरह आपने भी सराहना की हो ) फोन में पूरी तरह ख़ारिज़ कर दिया , मैने एक शब्द भी बचाव में नही कहा ! अपनी ग़ज़लों की गिनती में मैने एक कम कर लिया , वो गज़ल पटल मे ज़रूर है लेकिन मेरी गिनती में नही है । मै इस सोच का विद्यार्थी  हूँ और रहूँगा । ये सोच किसी और की हो ये ज़रूरी  नहीं पर मै ऐसा ही हूँ ।

मै अपना मोब. न. दे रहा हूँ , आपको जब कोई कठिनाई हो और ऐसा लगे कि मेरे पास उसका हल मिल सकता है तो बे ख़टके फोन कर सकते हैं -- क्योंकि जो बात लिखने में 15 मिनट ले लेती है , बात करके समझाने में 2 मिनट लगते हैं ।

0 94076 11717  - 0788 2223656

तय जानिये , माफी मांगने जैसी कोई गलती नही हुई है ॥

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 24, 2015 at 7:34am

आ० वीनस सर से गज़ल के बाबत फोन पर कल विस्तार से चर्चा हुयी और बहुत सी बातें समझ में आई,उन्ही को यहाँ आगे रख रहा हूँ...

 

 

ये हैं मरासिम उसकी मेरी ही निगाह के

तामीरे-कायनात है जिसका ग़वाह के

//मतले के सानी में ''के'' अतिरिक्त है,पूर्व में मैं  मतला और हुस्न-ए-मतला को एक यूनिट के रूप में मानकर चल रहा था,और सानी में ‘के’ को कि के अर्थों में लेते हुए हुस्न के मतला से जोड़कर आगे का शेर रख रहा था..आ० वीनस सर ने ऐसा करना गलत बताया जैसा कि एक शेर अपने आप में पूर्ण होता है इसलिये उसे दुसरे शेर से इस प्रकार जोड़ा नही जा सकता वर्ना गज़ल गज़ल न होकर नज्म का रूप ले लेगी...इस संदर्भ में निश्चित रूप से शेर को बदलने की आवश्यकता है!...//

..

सजदा करूँ मैं दर पे तेरी गाह गाह के

पाया खुदा को मैंने तो तुमको ही चाह के

//गाह गाह का का प्रयोग दोष उत्पन्न कर रहा है इसे सुधारने की प्रयास करता हूँ//

 ..

हाँ इस फ़कीरी में भी है रुतबा-ए-शाह के

यारब मै तो हूँ साए में तेरी निगाह के

 

मिसरा-ए-उला में ....’के’ को कि’ या ‘क्यूंकि’ के अर्थ में देखने पर बात स्पष्ट हो जाती है.............. इस फकीरी में भी शाह का रुतबा है कि या क्यूंकि याखुदा मै आपके निगाह के साए में हूँ..

 ..

जो वो फ़रिश्ता गुजरे तो पा खुद-ब-खुद लें चूम

बिखरे पडे हैं फूल से हम उसकी राह के

 

सानी में ‘के’ का अर्थ कुछ यूँ रखने का प्रयास था>>>

राह के फूलों से हम बिखरे हुए पड़े है और जब वह फ़रिश्ता इधर से गुजरेगा तो स्वतः कदमबोस होंगे!

 

 ..

छूटा चुराके दिलको वबाले-जहाँ से मैं

ऐ “जान” हम हुए हैं मुरीद इस गुनाह के

 

आ० वीनस सर ने शुतुर्गुरबा दोष की ओर ध्यान दिलाया है उसे सुधारने का प्रयास करता हूँ...सानी में मुरीद होना अस्पष्ट सा है..इसके पीछे मेरा ये अर्थ था के मैं बार-बार जन्मों-जन्मों से यही गुनाह करते आ रहा हूँ! दिल चुराने के गुनाह के हम मुरीद से हो गये है!

सादर!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 24, 2015 at 6:30am

आ० इन चित्रों को प्रस्तुत करने का मकसद अपनी बात को मनवाना नही है बल्कि इस बात की ओर इशारा करना है के एक विद्यार्थी के रूप में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारियों से कितनी दुविधा पैदा होती है,और इसके बाद यदि कोई एक ही प्रश्न दुबारा पूछे तो उसे हठधर्मिता न समझी जाये,हा बिना किसी आधार के अनरगल बात करना obo पटल पर किसी भी सूरत में स्वीकार नही है..इसका भान मुझे है!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 24, 2015 at 6:16am

nigah-e-gaah-gaah

निगह-ए-गाह-गाह

نگہ گاہ گاہ

glance here and there

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 24, 2015 at 6:12am

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 24, 2015 at 1:08am

आ० गिरिराज सर! मै तहेदिल से क्षमाप्रार्थी हूँ यदि मेरी कोई बात अशिष्ट लगी हो तो क्षमा करें !

//आपको आपनी गज़ल मे किसी का कुछ कहाना अच्छा नहीं लगता ?// आ० ऐसी कोई बात नही है बस मैंने

अपनी बात एक विद्यार्थी के रूप में ही मंच पर रक्खी थी  ,और एक विद्यार्थी के रूप में ही मेरा प्रश्न पूछने का भाव रहता है न कि अपनी बात ही मनवाने का प्रयास !

यदि शिष्य अपनी बात/अपने प्रश्न शिक्षक के सामने नही रक्खेगा तो आखिर वह कैसे और क्या सीखेगा??obo मंच में ससम्मान परस्पर सीखने-सिखाने का जो भाव है मै उसी के अंतर्गत ही अपनी बात रखने प्रयास करता हूँ,

कौन सी बात किस प्रकार से रखनी है या कहनी  है इसका मुझे बहुत ज्ञान नही है, यदि कहीं गलती हो जाये तो विनम्र निवेदन है के अल्पमति समझ क्षमा करें!

आ० आपकी एक बात याद आती है के आपने पूर्व में कहा था के गज़ल के शब्दों के वज़न में यदि हिंदी और उर्दू के उच्चारण में भिन्नता के कारण दुविधा हो रही हो तो गज़ल में जिस भाषा की प्रकृति के शब्द अधिक हो उसी के अनुसार वजन का पालन करें!

इस रामबाण उपाय के तहत ही शब्दों के अर्थ के संदर्भ में भी लिया जाये तो ''गाह'' शब्द का अर्थ गजल के प्रकृति के अनुरूप उर्दू शब्द के रूप में ही देखना चहिये..आ० वीनस सर ने भी प्रत्यय के रूप में ही गाह का प्रयोग सही माना है पूर्व में उनकी बात स्पष्ट रूप से मै समझ नही सका इसका खेद है साथ ही क्षमाप्रार्थी हूँ! कारण उर्दू शब्दकोशों में 'गाह' शब्द का अर्थ जगह,स्थान के रूप में दिया होना है!आ० बार-बार पावरकट की समस्या के चलते मैं समय पर प्रतिउत्तर नही दे पा रहा हूँ इसके लिए खेद है..एक विद्यार्थी के रूप गजल पर अपनी बात में आगे रखूँगा...

Comment by Madan Mohan saxena on June 23, 2015 at 4:20pm

सजदा करूँ मैं दर पे तेरी गाह गाह के
पाया खुदा को मैंने तो तुमको ही चाह के

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service