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एक गज़ल,,,,
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वज़्न = २१२२   २१२२  २१२२ २१२
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
===========================

सूख जातॆ फ़ूल पत्तॆ शाख़ भी हिलती नहीं !!
क्यूँ ग़रीबी कॆ बगीचॆ मॆं कली खिलती नहीं !!(१)

बॆटियॊं का बाप हूँ दिल जानता है सच सुनों,
आज कॆ इस दौर मॆं बॆटी सहज पलती नहीं !!(२)

बात करतॆ हॊ यहाँ अच्छॆ दिनॊं की खूब तुम,
तीरग़ी सॆ है भरी यॆ रात क्यूँ ढलती नहीं !!(३)

दॆख लॊ मुझकॊ तुम्हारॆ मुल्क का मज़दूर हूँ,
आज भी मुझकॊ ज़िया-ए-रॊशनी मिलती नहीं !!(४)

आसमां की छांव मॆं दिन ‘राज़’ कॆ बीतॆ भलॆ,
तल्ख़ियॊं की आग सॆ माँ की दुआ जलती नहीं !!(५)

"राज़ बुन्दॆली"
१५/०६/२०१५
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by kanta roy on June 15, 2015 at 12:58pm
बॆटियॊं का बाप हूँ दिल जानता है सच सुनों,
आज कॆ इस दौर मॆं बॆटी सहज पलती नहीं !! ....... सच के धरातल पर लिखी गई ये गजल दिल को छू गई । बधाई आपको राज बुंदेली जी
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 15, 2015 at 11:33am

आ० राज साहिब

बहुत उम्दा गजल कही आपने . जो छंद अभ्यासी है उनके लियेः यह मुश्किल नहीं है . आपको बधाई . सादर .

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