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वो पत्थर था , बहुत थे फेंकने वाले
बन गए हीरे पर , उसे तराशने वाले


कब समझा है कोई वक़्त का इशारा
बन गए हैं ख़ुदा , उसे समझने वाले


ख्वाहिशें तो रखते है ज़माने में सब
और ही होते हैं ,उन्हें पूरा करने वाले


ग़ुम है बदगुमानी में ,ये सारी दुनिया
मिलते हैं कहाँ ,अब सच लिखने वाले


तलाश थी सिर्फ , एक फूल की विनय
हज़ार मिले राह में, कांटे रखने वाले !!

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on June 14, 2015 at 11:47pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय कृष्ण मिश्रा जान गोरखपुरी जी , कुछ सुधार किया है , कृपया बताएं ठीक है --
वो पत्थर था , बहुत थे फेंकने वाले
बन गए हीरे पर , उसे तराशने वाले
कब समझा है कोई वक़्त का इशारा
बन गए हैं ख़ुदा , उसे समझने वाले
ख्वाहिशें तो रखते है ज़माने में सब
और ही होते हैं ,उन्हें पूरा करने वाले
ग़ुम है बदगुमानी में ,ये सारी दुनिया
मिलते हैं कहाँ ,अब सच लिखने वाले
वो पत्थर था , बहुत थे फेंकने वाले
बन गए हीरे पर , उसे तराशने वाले !!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 14, 2015 at 10:44pm

परम आदरणीय गोपाल सर! ने गजल की दृष्टि से मूल बातें बता ही दी है, जिनमे आ. आपने काफिया और रदीफ़ के दोष को मतले में दुरुस्त भी कर लिया है..काफिया 'अने' पर बधने से  'दिखाने' में 'आने' काफिया में लेना दोष पूर्ण होगा! बाकी बात रह गयी है वज्न/बहर की आ० मंच पर गज़ल पर बहुत ही शानदार लेख मौजूद है उनका लाभ लें! आ० rajesh kumari ने सच कहा है भाव पक्ष बहुत सुन्दर है,इस रचना को ग़ज़ल में ढालेंगें तो एक नायाब ग़ज़ल बनेगी!

Comment by विनय कुमार on June 14, 2015 at 9:53pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी , कोशिश करूँगा कि सीख सकूँ । जैसा की आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ने कहा है कि // प्रथम शेर के दोनों मिस्रो में समान काफिया और रदीफ़ अनिवार्य है //, तो मैं अगर प्रथम शेर को कुछ यूँ लिखूं तो क्या उचित होगा --
वो पत्थर था , बहुत थे फेंकने वाले
बन गए हीरे पर , उसे तराशने वाले
कृपया मार्गदर्शन करें , सादर धन्यवाद..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 14, 2015 at 9:46pm

विनय कुमार जी ,इस रचना को ग़ज़ल में ढालोगे तो एक नायाब ग़ज़ल बनेगी भाव पक्ष बहुत सुन्दर है बस मापनी पर कसना है उसके लिए आप ओबिओ में ही ग़ज़ल की कक्षा ज्वाइन करें आप धीरे धीरे सब सीख जायेंगे आपने काफिया अने  तथा वाले रदीफ़ अच्छे से निबाहया किन्तु पहला मतला नहीं लिखा -मतले की ऊपर की  पंक्ति में भी काफिया व् रदीफ़ आता है जैसे आपने नीचे की पंक्ति में लिया है ---बन गए हीरे पर , उसे तराशने वाले

खैर इस कोशिश के लिए बधाई व् शुभकामनायें 

Comment by विनय कुमार on June 14, 2015 at 9:28pm

बहुत प्रसन्नता हो रही है मुझे की मेरे इस प्रथम प्रयास को आपने समय दिया और मुझे इसकी खामियाँ बतायीं । अभी मुझे इन चीजों का ज्ञान नहीं है , सीखने का प्रयास करूँगा । बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , आपका स्नेह मिलता रहे.. 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 14, 2015 at 9:22pm

आ० विनय जी

प्रथम शेर के दोनों मिस्रो में समान काफिया और रदीफ़ अनिवार्य है  . जैसे-  जमाने ने मारे ज वां  कैसे कैसे  

                                                                                                   जमीं खा गयी आस मां कैसे कैसे

आपने बहर नहीं लिखी इससे शिल्प की परख नहीं की जा सकी

रचना का भाव पक्ष सबल है . प्रयास जारी रहना चाहिए . सादर .

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