For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - फिल बदीह --- वो सुनते नहीं कुछ , पुकारा बहुत है ( गिरिराज भंडारी )

122    122   122   122

जो कहते थे उनको इशारा बहुत है

वो सुनते नहीं कुछ , पुकारा बहुत है

 

ऐ तन्हाई आ मेरी जानिब चली आ

कि यादों को तेरा सहारा बहुत है

 

तबीयत से इक फूँक भारो तो यारों

जलाने को दुनिया, शरारा बहुत है

 

ये मजहब का ठेका हटा लो यहाँ से 

सुकूँ के लिये भाई चारा बहुत है

 

फलक बोस इमारत उन्हें हो मुबारक    --- गगन चुम्बी 

मुझे टूटी छ्त का सहारा बहुत है

 

ऐ साक़ी सुबू तू पिला दे किसी को

मुझे जाम आँखो का प्यारा बहुत है

 

तेरा शुक्रिया ग़म हमेशा कहूंगा 

तपा के , रुला के , निखारा बहुत है 

 

मुझे और खुशियाँ न देना ख़ुदाया

मुझे एक तेरा नज़ारा बहुत है

**********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 827

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 17, 2015 at 9:02am

आदरणीय समर कबीर भाई , आपकी मुहब्बतों से इनायतों दिल भर आया , मुहब्बत ऐसे ही बनाये रखियेगा ॥  हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।

Comment by vijay nikore on June 16, 2015 at 6:25pm

पढ़ कर दिल खुश हो गया। बधाई, भाई गिरिराज जी।

Comment by Samar kabeer on June 15, 2015 at 11:28pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,सब से पहली मुबारकबाद तो फ़िल बदीह की लीजिये ,इतने कम समय में इतनी मुरस्सा ग़ज़ल कहना,कमाल की बात है,अगर आप मेरे सामने होते तो आपको ज़ोर से बाँहो में भींच लेता,दिल बाग़ बाग़ हो गया,आज रात को मुझे नींद अच्छी आएगी,शैर दर शैर दाद के साथ ढेरों मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं,सलामत रहिये ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2015 at 8:30pm

आदरणीय सुशील भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।

Comment by Sushil Sarna on June 15, 2015 at 7:20pm

जो कहते थे उनको इशारा बहुत है
वो सुनते नहीं कुछ , पुकारा बहुत है

ऐ तन्हाई आ मेरी जानिब चली आ
कि यादों को तेरा सहारा बहुत है

वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह क्या कहने आदरणीय गिरिराज जी … बहुत सुंदर ग़ज़ल बन पड़ी है। हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2015 at 10:30am

आदरणीया कांता जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2015 at 10:29am

आदरणीय दिनेश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आभार आपका ।

Comment by kanta roy on June 15, 2015 at 8:15am
वाह !!!! क्या गजल कही है आपने ! हर शेर लाजवाब है । तनहाई को पुकारने की अदा भी क्या अदा है तो वहीं दुसरे शेर में देशभक्ति और मजहब की बात भी बहुत दिलदारी से कर ली आपने अपनी गजल में । हर शेर का अपना ही रंग और मिजाज़ है । शुक्रिया इतनी शानदार गजल को हम पाठकों तक पहुँचाने के लिये आदरणीय गिरीराज भंडारी जी ।
Comment by दिनेश कुमार on June 15, 2015 at 7:31am

बहुत अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद सर .. वाह वाह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2015 at 5:30am

आदरणीय कृष्णा भाई , आपका बहुत शुक्रिया ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service