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जिज्ञासा

प्रश्न?
केवल प्रश्नों के घेरे में
छटपटाता जीवन,
चीर दिया आकाश
फिर भी चंचल था यह मन
वह था मेरा प्यारा बचपन ;

हाईफन –
यौवन का हाईफन लाया
तटस्थ जीवन
क्या किसीसे हो पाया
कोई सेतु बंधन !
व्यर्थ,
व्यर्थ ही कुछ क्रंदन ;

अल्पविराम ,
प्रौढ़त्व के अल्पविराम पर
टिका हुआ है जीवन
इच्छाओं के जंगल से निकलकर
जान पाया मन
जीवन है एक उपवन ;

अंत में,
पूर्णविराम के साथ
हे मेरे ईश्वर,
प्रशांति के वलय में क्या
दोगे मुझको उत्तर
मेरे उस मूल प्रश्न का !!!
बशर्ते तुम्हें मालूम हो.....
(मौलिक तथा अप्रकाशित रचना)

Views: 727

Comment

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Comment by kanta roy on June 15, 2015 at 11:18pm
बहुत सुंदर रचना हुई है आपकी यह आदरणीय शरदेंदू मुखर्जी जी ॥
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 14, 2015 at 11:16pm

प्रणाम आ० बहुत ही बेहतरीन आत्मगीत हुआ है!

बशर्ते तुम्हें मालूम हो.....??...यह मन में प्रश्न छोड़ गया? क्या यहाँ ''हे मेरे ईश्वर;'' संबोधन व्यक्तिवाचक है??

Comment by somesh kumar on June 14, 2015 at 9:13pm
Sunder
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 14, 2015 at 12:21pm

आ० दादा श्री

प्रश्न, हाईफन ,अल्प विराम और अंत में पूर्ण विराम  . मानव की जीवन  यात्रा को  बड़ी सहजता से  रूपायित किया आपने  पर आपका मूल प्रश्न मैं  नहीं पकड़ पाया .  मेरी असमर्थता . सादर.

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